बंदा कौन बंदगी करई।
रात-दिवस मिलि करै बंदगी, जो पै कबूल न परई॥
चाहत है मैं रह्यौं चरन ढिग, दृढ़ ह्वै धरनी धरई।
सांईं चहत मोर है नाहीं, दूर-दूर है रहई॥
जोगी-जती-मुनि जब सब थाके, करि कै तपस्या मरई।
नाहीं हित करि जानत आपन, नाहिं काज कछु सरई॥
आपु बंदगी करत करावत, जेहिं पर किरपा करई।
जगजीवन दास बिनती करि, बिनवै सीस चरन तर धरई॥
- पुस्तक : जगजीवन साहब की बानी, पहला भाग (पृष्ठ 8)
- रचनाकार : जगजीवन साहब
- प्रकाशन : बेलवेडरी स्टीम प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
- संस्करण : 1909
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