अजहुँ मिलो मेरे प्रान-पियारे
ajhun milo mere pran piyare
अजहुँ मिलो मेरे प्रान-पियारे।
दीनदयाल कृपाल कृपानिधि, करहु छिमा अपराध हमारे॥
कल न परत अति बिकल सकल तन, नैन सकल जनु बहुत पनारे।
माँस पचो अरु रक्त रहित भे, हाड़ दिनहुँ दिन होत उघारे॥
नासा नैन स्रवन रसना रस, इंद्री स्वाद जुआ जनु हारे।
दिवस दसो दिसि पंथ निहारति, राति बिहात गनत जस तारे॥
जो दुख सहत कहत न बनत मुख, अंतरगत के हौ जाननहारे।
धरनी जिव झलमलित दीप ज्यों, होत अँधार करो उजियारे॥
- पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 26)
- रचनाकार : धरनीदास
- प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
- संस्करण : 1931
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