अगलोड़ी रीत सही कर, पछे करौ गुरु चेला।
आदू रीत सांभळौ साधां, महाधरम है भेळा॥
धरा ठहराई जद चरम रचायौ, नेमिया तीनूं देवा।
बध्या धरम हुया विसतारा, फळ कोई बिरळा पाया॥
तन-मन दिया सोई अभै पद लिया, मुगति बिरळा पाया।
दसूं दोष कळेस टाळिया, पूरण संत कैवाया॥
असंग जुगां सूं धरम चल्यौ आयौ, पड़दै रा भेद दरसाया।
सूरज, बिंद, चंद घर साजौ, इण विध ब्रह्म पाया॥
पाँच भजन री करजौ थे सेवा, पछै भगति आया।
पाँच भजन बिना नारकी में जावोला, चौरासी गिराया॥
सगुण-निरगुण भगति गम कर देखौ, मूळ एक में पाया।
निज धरम री सेन सांभळौ, अंत एक में समाया॥
नांव रौ सिंवरण निरभय हुय साजौ, दुरमत दूर हटाया।
धरम झेलियां सूं करम कट जावैला, एक अखंडी में समाया॥
जोग कमाय जुगति सूं देखी, सरब एक में आया।
दुविधा मेटो माया सेन सांभळौ, वचनां सूं धरम हलाया॥
इण साखा सूं अनंत संत तिरिया, चौरासी दोष हटाया।
ऐड़ी राय जुगति सूं करजौ, ऐड़ा संत समझाया॥
अड़सठ तीरथ घट भीतर, बिन सतगुरु नहीं पाया।
तन-मन-धन दिया सतगुरु नै, सत सबद ओळखाया॥
साधु बाजे कळु में कूड़ा, वै मुगति पद नहीं पावै।
अजमल सुत रामदे भाखै, बीज प्रमाण दरसावै॥
बाबा रामदेव चित्त शुद्धि द्वारा मोक्ष-प्राप्ति का उपदेश देते हुए कहते हैं कि स्थापित विधि को भली प्रकार समझ लेने के बाद गुरु-शिष्य का संबंध स्थापित करो। हे साधुओ! इस प्राचीन विधि को ध्यानपूर्वक सुनो, महाधर्म भी इसके साथ है। इस सृष्टि की उत्पत्ति के साथ धर्म की भी रचना हुई। सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने इसी धर्म का संकल्प लिया था। सृष्टि के विकास के साथ-साथ धर्म का भी विस्तार हुआ। इस धर्म का फल किसी विरले व्यक्ति ने ही प्राप्त किया। जिसने अपना सर्वस्व अपने सद्गुरु के प्रति समर्पित कर दिया, उसी ने अभयपद की प्राप्ति की है। जिसने अपने दसों दोष क्लेश दूर कर दिए हों; वही पूर्ण संत कहलाता है। असंख्य युगों से यह धर्म चला आ रहा है। इस धर्म द्वारा शरीर का रहस्य समझकर, योग साधना द्वारा इसी शरीर में परब्रह्म की प्राप्ति समझाई गई है, जिसके अनुसार नाद और बिंदु की साधना द्वारा परब्रह्म की प्राप्ति की जाती है। पाँच भजनों (यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार) से चित्त को अंतर्मुखी किया जाता है, उसके बाद ही भक्ति सधती है। इस प्रकार इन पाँच साधनों का अभ्यास नहीं करने से नर्कगामी बनोगे, अथवा चौरासी लाख जीव-योनियों में आकर कष्ट पाओगे। सगुणोपासना और निर्गुणोपासना की पद्धतियों को ज्ञानपूर्वक देखो तो सभी का मूल लक्ष्य एक ही है। निज धर्म की दृष्टि से देखो तो सभी का एक ही सुपरिणाम है- जीवात्मा का परब्रह्म में मिलना। द्वैतभाव को दूर करके निर्भय होकर परब्रह्म का नाम स्मरण करो, इसी आत्मधर्म को धारण करने से कर्मों के सभी बंधन समाप्त हो जाएँगे और यह जीवात्मा एक अखंड परब्रह्म में मिल जाएगी। योग-साधना की युक्ति से देखो तो स्पष्ट होगा कि संपूर्ण ब्रह्मांड एक परब्रह्म में समाविष्ट है। दृश्यमान जगत् माया के कारण द्वैत रूप में दिख रहा है, यदि माया के रहस्य को समझ लो तो यह द्वैत भाव स्वतः समाप्त हो जाएगा। तत्त्वज्ञान के इन्हीं वचनों से इस धर्म का प्रवर्तन हुआ है। पूर्वोक्त योग साधना से असंख्य संत मोक्ष प्राप्ति कर चुके हैं, चौरासी लाख जीव-योनियों में आने से बच गए हैं। यही विधि तुम लोग युक्तिपूर्वक करो, अन्य संतों ने भी यही समझाया है। अड़सठ तीर्थ इसी काया में हैं, परंतु सद्गुरु के बिना इन्हें नहीं खोजा जा सकता। सद्गुरु के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित शिष्य ही इस आत्मज्ञान से परिचित हो सकता है। कलियुग में झूठे लोग भी साधु कहलाएँगे, पाखंडी कभी मोक्ष पद की प्राप्ति नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार अजमल पुत्र रामदेवजी मोक्ष का मूल मार्ग बताते हैं।
- पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 131)
- संपादक : सोनाराम बिश्नोई
- रचनाकार : बाबा रामदेव
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2015
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