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अबिनासी दूलह मन मोह्यो

abinaasii duulah man mohyo

संत केशवदास

संत केशवदास

अबिनासी दूलह मन मोह्यो

संत केशवदास

और अधिकसंत केशवदास

    अबिनासी दूलह मन मोह्यो, जा को निगम बतावै नेत

    निरंकार निरअंक निरंजन, निर्बिकार निरलेस।

    अगह अजोनि भवन भरि पायो, सतगुरु के उपदेस॥

    सुरति-निरति के बाजन बाजे, चित चेतन सँग हेत॥

    पाँच-पचीस एक संग खेलहिं, निर्गुन के यह खेत॥

    सुख-सागर अनुभव फल फूली, जगमग सुंदर सेत।

    नख-सिख पूरि रहे दसहूँ दिसि, सब घट अबिगत जेत॥

    अजर प्रकास जोति बिनु पावक, परम निरंतर देख।

    अनंत भानु ससि कोटिक निर्मल, केसो आतम लेख॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : केशवदासजी की अमीघूँट और जीवन-चरित्र (पृष्ठ 3)
    • संपादक : केशवदासजी
    • प्रकाशन : बेलवीडियर प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1979

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