Font by Mehr Nastaliq Web

सीमांत पूर्व

simant purva

प्रकाशचंद्र गुप्त

प्रकाशचंद्र गुप्त

सीमांत पूर्व

प्रकाशचंद्र गुप्त

और अधिकप्रकाशचंद्र गुप्त

    आसाम, भारत की पूर्वी सीमांत देश! जहाँ इतिहास की अगणित जातियाँ छन-छन कर आई, किंतु किसी बरसाती नदी की बाढ़-सी, उन्माद-भरी ब्रह्मपुत्र-सी, कोई आतताई विदेशी जाति कभी सकी। भारत का पूर्वीय सिंहद्वार जो कभी किसी आक्रमणकारी के लिए पश्चिमी सीमांत की भाँति नहीं खुला। अटल हिमाचल का ध्रुव जागरण, जिसे कभी कोई चोर या डाकू लाँघ सका। विश्वस्त प्रहरी अपनी कर्त्तव्य-निष्ठा में सदैव सजग, सदैव सचेत।

    तुम्हारा सुंदर वन-पर्वत देश मुझे याद आता है। तुम्हारे बॉस, कटहल और केले के वन, लघु-लघु पहाड़ियाँ जिन पर चाय के हरे-भरे बाग़ लहलहाते हैं, किंतु जिनका शोषण मानव-कीटाणु निरंतर चले जाते हैं, पहाड़ी नदी जो केहरि की भाँति गरजते, मस्त चाल से चले जाते हैं, किंतु जिनके विशाल वक्ष पर भी विश्वकर्मा से कुशल मानव ने लोहे के सेतु बाँध दिए हैं। निरंतर बादलों का तुमुल रव, गड़गड़ाहट, वर्षा की रिमझिम धूप और छाँह की आँख-मिचौली, प्रलय के पारावार सी बाढ़।

    तुम्हारे रूप की अनेक स्मृतियाँ मन में उमड़ती हैं और उसे मथ डालती हैं।

    तुम्हारे सरल-हृदय, श्याम-वर्ण निवासी, किसी परम आदिम जाति के वारिस, द्रविड़ अथवा मंगोल रक्त से पुष्ट और सशक्त, जिन्होंने विश्व-विजई आर्यों की पताका भी एक बार झुका दी! स्मृतियों से अभिषिक्त मणिपुर, नाग-कन्या उलूषी, चित्रांगदा और बभ्रुवाहन जिन्होंने धनंजय का गर्व भी एक बार धूल में मिला दिया; जहाँ प्रचंड आर्यों के विरचित अश्वमेध का दिग्विजई अश्व भी बंदी हुआ।

    आसाम का कला-कौशल भारत का गर्व है। मणिपुर का संगीत और नृत्य हमारी चिर-संचित थाती है। कथ्थक और कथाकाली के साथ मणिपुर की कला-परंपरा ने आधुनिक भारतीय नृत्य की सृष्टि की है।

    प्राचीन स्मृतियों और कथाओं का देश आसाम आज संकट में है। भारत की प्राचीनतम जातियों के देश को खाने की लालसा से आज काल ने मुँह खोला है।

    आज पूर्व और पश्चिम दिशाओं में वामन के विराट् आकार-सा फैलता बंगाल का अकाल उसे लीलने रहा है! आज सीमांत लाँघ कर उसी सुंदर पुण्य-भूमि को रौंदने दूर द्वीप के बौने निकल पड़े हैं।

    अगणित सदियों से स्वाधीन मणिपुर, भारत का सीमांत आसाम क्या आज आततायियों के सामने सिर झुकाएगा? क्या आज आसाम की धवल, शुभ्र स्वाधीन परंपरा एक बार फिर मलिन होकर धूल में लौटेगी?

    आसाम की वीर जातियाँ निरंतर शत्रु से लड़ी है। आसाम की वीरांगनाएँ अपने पराक्रम से पुरुषों को लज्जित कर चुकी है। चित्रांगदा के समान ही अनन्य साहस से रानी गिडालो ने ब्रिटिश साम्राज्य से मोर्चा लिया। आसाम के वीर हमारे स्वाधीनता संग्राम में सदा आगे रहे है और आज भी हमारा उत्साह बढ़ाते हैं।

    काँग्रेस का तिरंगा आसाम के आकाश में गर्व से लहराता है। गोहाटी में काँग्रेस का अधिवेशन धूम-धाम से हुआ। पांडवों के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए अनेक प्राचीन और अर्वाचीन महाश्रमण यहाँ आए। इनमें ही महात्मा गाँधी और प० जवाहर लाल नेहरू हैं, जिनके भावुक हृदय आसाम के प्राचीन वैभव और रूप-राशि और उसकी आधुनिक पीड़ा से द्रवित हुए। मुस्लिम जातियों के लिए आसाम की विशेष महत्ता है। इसी पूर्वी सिंहद्वार से बर्बर शत्रु हमारे सुंदर देश में घुसकर उसे कुचलने का इच्छुक हैं।

    आज आसाम के वीर हमारे मोर्चे के अग्रणी हैं। भारत के अंतिम आक्रमणकारियों का सिर वही नीचा करेंगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रेखाचित्र
    • रचनाकार : प्रकाशचंद्र गुप्त
    • प्रकाशन : विद्यार्थी ग्रंथागार, प्रयाग

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए