वयसंधि वर्णन
waysandhi warnan
(छंद पद्धरी)
जब दसम वरष प्रवेस। तब अतन जतन प्रदेस॥
पुतरनि जो खेलत बाल। अति चरन चंचल प्याल॥
तन वसन लागत धूरि। निरखत नैननि पूरि॥
विगलत्त अंचल चीर। तिहि धरति नाहिन धीर॥
सब प्रकृति उलटि अचान। फिर अंग मनमथ आन॥
यह वैस निरखत नैन। थकि मुखह पुहुकर वैन॥
(चौपही)
निस पुतरी सेज्या पौढ़ाई। देखि प्रात उठि रही लजाई॥
चलत न धाइ खेल अनुरागी। बसन धूरि उठि झारन लागी॥
निरखि नैन पुनि दृष्टि छिपावै। बार-बार उठि अंचल लावै॥
छूटे बार बधावति बाला। उहि विधि चित्त न आवत प्याला॥
उलट अचानक प्रीत पुरानी। वदन जोति सोभा अधिकानी॥
रंग अनंग दुति अंग जनाई। चरन चपलता नैननि आई॥
(दोहा)
सैसवताई जतन तनु, प्रगट तरुनता होति।
दुतिहि देखि पाँनूस ज्यौं, पुहुकर मनमथ जोति॥
(दंडक)
लसै बय संधि आछी अमल अनूप अंग
अंबर उदित इंद्र कैसो चंद देखिये।
पुहुकर कहै दुति वरनी न जात मोपै
जोई कवि कहै छवि ताही तै विलेखिये॥
लेखि न परति सिसुताई तरुनाई तन
कौन घटि कौन बढ़ि कौन भाँति लेखिये।
सोभा घाम छाँह ज्यौं, सुनैनी कैसे नैन ज्यौं
कुरंग कैसे नैन ज्यौं दुरंग वैस देखियै॥
(दोहा)
तन लज्जा मुख मधुरता, लोचन लोल विसाल।
देखत जोबन अंकुरित, रीझत रसिक रसाल॥
(चौपही)
भौंह चक्र पच्छिम अनियारे। मद खंजन जनु बान सँवारे॥
श्रवन सींव लोचन रतनारे। पदम पत्र पर भँवर विचारे॥
कुंडिल किरनि कपोलन झाँई। छवि कवि पै कछु बरन न जाई॥
मुत्तियगन देखत मन मोहै। जनु नछत्र ससि पारस सोहै॥
मंद हास दसनन छवि देखी। सुधा सींचि दारौं दुति लेखी॥
नासी निकट अधर मधु राखे। चाहत कीर बिंब फल चाखे॥
जुग उरोज कछु दई दिखाई। उपमा इक मेरे मन आई॥
कमल कली सोभा सुखदाई। जोबन सर झीने मन आई॥
उदर छामि कटि जान न जोई। श्रोनि भार भंगुर अति होई॥
मंद मराल गही गति बाला। कहँ लगि कहौँ विनोद रसाला॥
(दोहा)
पुहुकर अधरन अरुनता, किहि गुन भई अँचान।
जग जीतन कौ मदन पै, लिये पैज किरपान॥
- पुस्तक : रसरतन (पृष्ठ 27)
- संपादक : शिवप्रसाद सिंह
- रचनाकार : पुहकर
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
- संस्करण : 1963
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