रेवंत गिरि रासु (प्रथमं कडवम्)
rewant giri rasu (prathaman kaDwam)
परमेसर-तित्थेसरह, पय-पंकय पणमेवि।
भणिसु रासु-रेवतिगिरे, अंबिक-दिवि सुमरेवि॥१॥
गामागर-पुर-वण-गहण—, सरिवरि सु-पएसु।
देवि-भूमि दिसि-पच्छिमह, मणहरु सोरठ-देसु॥२॥
जिणु तहि मंडल-मंडराऊ, मरगय-मउड-मंहतु।
निम्मल-सामल-सिहिर-भरे, रेहइ गिरि रेवंतु॥३॥
तसु-सिरि सामिउ सामलउ, सोहग-सुंदर-सारु।
जाइव निम्मल-कुल-तिलउ, निवसइ नेमि-कुमारु॥४॥
तसु मुह-दंसणु दस-दिसि वि, देस-देससंतरु संघ।
आबइ भाव-रसाल-भण, उहलि रंग-तरंग॥५॥
पोरुयाड-कुल-मंडणउ, नंदण आसाराय।
वस्तुपाल वर-मंति तहिं, तेजपालु दुइ भाय॥६॥
गुरजर-धर धुरि धवलकि, वीरधवलदेव-राजि।
बिहु बंधवि अवयारिउ, सू मु दूसम-माझि॥७॥
नायल-गच्छह मंडणउ, विजयसेण-सूरिराउ।
उवएसिहि बिहु नर-पवरे, धम्मि धरिउ दिढ़ु भाउ॥८॥
तेजपालि गिरनार-तले, तेजलपुरु निय-नामि।
कारिउ गढ़-मढ-पव-पवरु, मणहरु धरि आरामि॥६॥
तहि पु-रि सोहिउ पास-जिणु आसाराय-विहारु।
निम्मिउ नामिहि निज-जणणि, कुमर सरोबरू फारु॥१०॥
तहि नयरह पूरव-दिसिहि, उग्रसेण-गढ-दुग्गु।
आदिजिणेसर-पमुह-जिण—, मंदिरि भरिउ समग्गु॥११॥
बाहिरि-गढ दाहिण-दिसिहि, चउरिउ-वेहि विसालु।
लाडुकलह हिय-ओरडीय, तडि पसु-ठाइ करालु॥१२॥
तहि नयरह उत्तर-दिसिह, साल-थंभ-संभार।
मंडण-महि-मंडल-सयल, मंडप दसह उसार॥१३॥
जोइउ जोइउ भविय ण, पेमि गिरिहि दुयारि।
दामोदरु हरि पंचमउ, सुवन्नरेह-नइ-पारि॥१४॥
अगुण अंजण अंविलीय, अंबाड्य अंकुल्लु।
उंबरु अंबरु आमलीय, अगरु असोय अहल्लु॥१५॥
करवर करपट करुणतर, करबंदी करवीर।
कुडा कडाह कयंब कड करब कदलि कंपीर॥१६॥
वेयलु वंजलु बउल बडो, वेडस वरण विडंग।
वासंती वीरिणि विरह, वंसियालि वण वंग॥१७॥
सींसमि सिंबलि सिर सभि, सिंधुवारि सिरखंड।
सरल सार साहार सय, सागु सिगु सिण दंड॥१८॥
पल्लव-फुल्ल-फलुल्लसिय, रेहइ ताहि वणराइ।
तहि उज्जिल-तलि धम्मियह, उल्लटू अंगि न माइ॥१९॥
बोलावी संघह तणीय कालमेघन्तर-पंथि।
मेल्हविय तहिं दिढ धणीय, वस्तपाल वर-मंति॥२०॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 39)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : Vijaysen Suri
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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