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रेवंत गिरि रासु (चतुर्थ कडवम्)

rewant giri rasu (chaturth kaDwam)

विजयसेन सूरि

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रेवंत गिरि रासु (चतुर्थ कडवम्)

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    गिरि गरुया सिहरि चडेवि, अंब-जंबाहिं बंबालिउं ए।

    संमिणि णि अंबिकदेवि, देउलु दीठु रम्माउलं ए॥१॥

    बज्जइ एताल कंसाल, बज्जइ मदल गुहिर-सर।

    रंगिहि नच्चइ बाल, पेखिवि अंबिक-मुह कमलु॥

    सुभ-करु एक ठबिउ उछंगि, विभकरो नंदणु पासिक (?) ए।

    सोहइ एउजिलि-सिंग, सामणि सीह सिघासणी ए॥३॥

    दावइ दुक्खहं भंगु, पुरइ वंछिउ भवियजण।

    रक्खइ उविहु संघु पुरइ वंछिउ भवियजण॥

    रक्खइए उविहु संघु सामिणि सीह-सिघासणी ए॥४॥

    दस दिसि नेमि-कुमारि, आरोही अवलोइ उं ए।

    दीजइ तहि गिरनारि, गयणांगणु अवलोण-सिहरो॥५॥

    पहिलइ सांब-कुमारु, बीजइ सिहरि पज्जून पुण।

    पणमइं पामइं पारु, भवियण भीसण-भव-भमण॥६॥

    ठामि हि ठामि रयण सोवन्न बिंबं जिणेसर तहिं ठविय।

    पणमइ ते नर धन्न, जे कलि-कालि मल-मयलिय ए॥७॥

    जं फलु सिहर-समेय, अठ्ठावय-नंदीसरिहि।

    तं फलु भवि पामेइ, पेखेविणु रेवंत-सिहरो॥८॥

    गह-गण-ए माहि जिम भाणु-पव्वय-माहि जिम मेरुगिरि।

    त्रिहु भुयणे तेम पहाणु तित्थं-माहि रेवंतगिरि॥९॥

    धवल धय चमर भिंगार, आरत्ति मंगल पईव।

    तिलय मउड कुंडल हार, मेघाडंबर जावियं (?) ए॥१०॥

    दियहि नर जो ( पवर ) चंद्रोय, नेमि-जिणेसर-वरभूयणि।

    इह-भवि भुंजवि भोय, सो तित्थेसर-सिरि लहइए॥११॥

    चउ-विह संघु करेइ, जो आवई उज्जिंत-गिरि।

    दिविस बहू रागु करेइ, सो मुंचइ चउगइ-गमणि॥१२॥

    अठ-विह ज्जय करंति, अट्ठाई जो तहि करइ ए।

    अठ-विह एकरम हरणंति सो, अट्ठ-भावि सिज्झाइ॥१३॥

    अंबिल जो उपवास, एगासण नीवी करइं ए।

    तसु मणि अच्छइं आस, इह-भव पर भव विहव-परे॥१४॥

    पेमिहि मुणि-जण अन्न (ह), दाणु धम्मियवच्छलु करइं ए।

    तसु कही नहीं उपमाणु, परभाति सरण तिणउ (?)॥१५॥

    आविही जे उज्जिंति, घर-धरइ धंधोलिया ए।

    आविही हीयह जं ति, निफ्फलु जीविउ सास तणउं॥१६॥

    जीविउ सो जि परि धन्नु, तासु समच्छर निच्छणु ए।

    सो परि मासु परि धन्नु, वलि हीजइ नहि बासर ए॥१७॥

    (जि) ही जिणु उज्जिल-ठामि, सोहग-सुदर सामलु (ए)।

    दीसइ तिहूण-सामि, नयण-सलूणउं नेमि-जिणु॥१८॥

    नीझर (ण) चमर ढलंति, मेघाडंबर सिरि धरीइं।

    तित्थह सउ रेवदि, सिहासणि जयइ नेमि-जिण॥१९॥

    रंगिहि रमइ जो रासु, (सिरि) विजयसेण-सूरि निंमविउ ए।

    नेमि-जिणु तूसइ तासु, अंबिक पूरइ मणि रली ए॥२०॥

    ॥समत्तु रेवंतगिरि-रासु॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 44)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : विजयसेन सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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