पंचपंडव चरित रासु (ठवणि ७)
panchpanDaw charit rasu (thawani ७)
अह दैवह वसि तेवि पंच ए पंडव बणि चलिय
हथिणउरि जाएवि मुकलावइं निय माय पीय॥१॥
पय पणमीय निय ताय कुंती मद्री पय नमीय
सच्च वयण निरवाहु करिवा काणणि संचरइं॥२॥
लेई निय हथियार द्रोण पियमहि अणगमीय
कुंतादिवि भरतार नयण नीर नीझर झरइं ए॥३॥
सच्चवई पिय माय अंबा अंबाली अंबिका
कुंती मुद्री जाइ बउलावेवा नंदणह॥४॥
पभणइ जूठिलु राउ ‘माइ म अरणइ तुहि करउ
निय घरि पाछां जायउ लोकु सहूयइ राहवउ॥५॥
दाणवि कूरि कमीरि पंचाली बीहावीयउ
भूझिउ मारीउ वीरू भीमहिं तु दुरयोधनह॥६॥
तउ वनि कामुक जाई पंचह पंडव कुणबि सउं
मंत्रह तणइ उपाइ अरजुनु आणइ रसवती य॥७॥
पणमीयतायह पाय पाछउ वालीउ मद्रि सउं
विद्या बुद्धि उपाइ आपीय पहुतउ पीत्रीयउ॥८॥
पंचाली नउ भाउ पंच पंचाल लेउ गिउ
एत इं केसवु राउ कुंती मिलि वा आवीयउ॥९॥
बलु बोलीउ बलबंधु सुभद्रा लेई सांचरए
हिव पुणु हूउ निबंधु कुंती थुं सरसा सात ज ए॥१०॥
एहु तु पुरोचन नामि पुरोहितु दुर्योधनह
“तुम्हि वीनविया सामि राय सुयोधनि पय नमीय॥११॥
मइं मूरखि अजाणि अविणउ कीधउ तुम्हा रहइं
मुं मोटी मुहकाणि तुम्हें खमउ अवराहु मुह॥१२॥
पाधारिसिउ म रानि वारणवति पुरि रहण करउ
ताय तणइ बहुमानि हुं अराधिसु तुम्ह पय”॥१३॥
कूडु करी तिणि विप्रि वारणवति पुरि आणीया ए
किसुं न कीजइ शत्रि अवसरि लाधइ परभवह॥१४॥
बिदुरि पवाचिउ लेखु “दुरयोधनु मन वीसिसउं
एसु पुरोहितवेषु कालु तुम्हारउ जाणिजउ॥१५॥
इंह घरि अछइ मंत्रु लाख तणउं छइ धवलहरो
माहि पउढाडउ शत्र एकसरा सवि संहरउं॥१६॥
काली चऊदसि दीहु तुम्हे रूडइं जोइजउ।
एउ दुरयोधनु सीहु आई उ पाइं मारिसिए”॥१७॥
भीमु भणइ “सुणि भाय वारउ वयरी वाधतउ
कुलह कुलंछणु जाइ एकि सुयोधनि संहरीइं”॥१८॥
सगिरिहिं खणीय सुरंग विदुरि दिवारीय दूर लगइ
हुं ऊगारउ अंग ईण ऊपाइ पंडवह॥१९॥
इकि डोकरि तिणि दीसि पांच पुत्र इकि वहूय सउं
कुंती नइ आवासि वटेवाहू वीसमियां॥२०॥
रातिं चालइ राउ मागि सुरंगह कुणबि सउं
दियइ पुरोहितु दाउ लाखहरइ विसनरु ठवइ॥२१॥
साधीउ पच्छेवाणु भीमि पुरोहितु लाखहरे
मेल्हीउ दीधु पीयाणु केडइ आवी पुणु मिलए॥२२॥
हरखीउ कउरवु राउ देखी दांधां माणसहं
जोयउ पुन्नपभाउ पंडव जीवी उगरए॥२३॥
॥वस्तु॥
दैवु न गिणई देवु न गिणई पुण्यु नइ पापु
संतापु सुयणह करई पुण्यहीन जिम राय रोलई
दारिद्र दुक्खु केह भरई तृणा कज्जि गिरि सिहरु ढोलई
जोउ मग्गि निसंबला पंचइ पंडव जंति
राजु छंडाव्या वणि फिरइं धिगु धिगु दुख सहंति॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 108)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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