नेमिजिणिंदह पय पणमेवी
सरसति सामिणि मनि समरेवी
अंबिकि माडी अणुसरउ॥१॥
आगइ द्वापर माहि जु वीतो
पंचह पंडव तणउ चरीतो
हरखि हिया नइ हुं भणउं॥२॥
रासि रसाउलु चरीउ थुणीजइ
किम रयणारु हीयइं तरीजइ
सानिधि सासणदिवि तणई॥३॥
आदि जिणेसर केरउ नंदणु
कुरुनरिंदु हूउ कुलमडणु
तासु पुत्तु हूउ हाथियउ॥४॥
तीणइ थापिउ तिहूयणसारो
बीजउ अमरापुरि अवतारो
हथिणाउरपुरि वन्नीयए॥५॥
तिणि पुरि हूउ संति जिणेसरु
संघह संतिकरउ परमेसरु
चक्कवट्टि किरि पंचमउ॥६॥
तिणि कुलि मुणीय संतणु राओ
भूयबलि भंजइ रिउभडिवाओ
दाणि जगु ऊरिणु करए॥७॥
अन्नदिवसि आहेडइ चल्लइ
पारधिवसणु सु किमइ न मिल्हइ
दलु मेल्ही दूरिहि गयओ॥८॥
हरिगु एकु हरिणी सुं खेलइ
कोमलवयणि हरिणी बोलइ
“पेखि पेखि प्रिय पारधीउ”॥९॥
सरु सांधी राउ केडइ धाइ
हरिणउ हरिणी सहितु पुलाइ
ऊजाईउ गिउ गंगवणे॥१०॥
नयणह आगलि गयउ कुरंगू
राय चींति जां हूयउ विरंगू
जोइ वामूं दाहिणउं॥११॥
तां वणि पेखइ मणिमइ भूयणु
तीछे निवसइ नारीरयणु
खणि पहुतउ राउ धवलहरे॥१२॥
जन्हनदिह केरी धूय
गंगा नामि रइसमरूय
ऊठह नरवइ सामुहीय॥१३॥
पूछइ राजा “कहि समिवयणि
इणिवणि वसीइ कारणि कमणि”
बोलइ गंग गहासईय॥१४॥
“जो अम्हारुं वयणु सुणेसिइ
निश्चिं सो वरु मइं परिणेसिइ
खेचरु भूचरु भूमिधरो”॥१५॥
तं जि वयणु राइं मानीजइ
जन्हराय बेटी परिणीजइ
परिणी पहुतउ निययघरे॥१६॥
ए पुत्तु तसु कूखि ऊपन्नउ
विद्या लक्षण गुणसंपन्नउ
कला वाहत्तरि सो पढए॥१७॥
गंगानामि गंगेउ भणीजइ
क्रमि क्रमि जुव्वणि तिणि पसरींजइ
बीज तणी ससिरेह जिम॥१८॥
नितु नितु राउ अहेडइ चल्लइ
रोसि चडि राणी इम बुल्लइ
“प्रियतम पारधि मन करउ''॥१९॥
राइ न मानी गंगा राणी
तीणं दूखि मनि कुरमाणी
पूत्तु लेउ पीहरि गईय॥२०॥
धतुषकला माउलउ पढावइ।
जीवदया नियचित्ति रहावइ
बोधिं चारणमुनि तणइं॥२१॥
साचउ जाणइ जिणधर्ममागो
तउ मनि जूवण लगइ विरागो
गंगानंदणु वणि वसए॥२२॥
वस्तु
राउ संतणु राउ संतणु वयणु चुक्केवि
आहेडइ चल्लीऊ पावपसरि मनि मोहि घूमीउ
पुत्तू लेउ पीहर गई गंग तीण अवमाणिं दूमीय
वात सुणी पाछउ वलइ जां नवि देखइ गंग
चउवीसं [बासं] रहइ जिमु रइहीणु [अणंगु]॥२३॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 93)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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