संयोगिता रूप-वर्णन

sa.nyogita ruupa-var.nan

चंदबरदाई

चंदबरदाई

संयोगिता रूप-वर्णन

चंदबरदाई

और अधिकचंदबरदाई

    संजोगि जोवन जं बनं।

    सुनि श्रवण गुरुराज नं।

    तर चरण अरुणति अध्धनं।

    जनु श्रीय श्रीषंड लध्धनं।

    नष कुंद मिलिय सुभेसनं।

    प्रतिबिंब श्रोणि सुदेसनं।

    नग हेम हीर जु थप्पनं।

    गय हंस मग्ग उथप्पनं।

    कसि कासमीर सुरंगनं।

    विपरीत रंभ ति जंघनं।

    रसनेव रंज नितंविनी।

    कुसुमेष एष विलंविनी।

    उंर भार मध्य विभंजनं।

    दिय रोम राइ थंभनं।

    कुच कंज परसन अंजली।

    मुष मउष दोष कलक्कली।

    हिय अयन मयन ति संथयउ।

    भज गहन गहन निरंथय।

    जानुं हीन झीन ति कंचुकी।

    भुज ओट जोट ति पंचकी'।

    नलिनाभ पांनि वियछ्छयउ।

    जनु कुंद कुंदन संचयउ।

    कल ग्रीव रेह त्रिवल्लया।

    जांनु पंचजन्न सु ठिल्लया।

    अधर पक्व सु बिंबनं।

    सुक सालि अलिन षंडनं।

    दसन सुत्ति सु नंदनं।

    प्रतिभास सुद्दित वंदनं।

    मधु मधुरया मधु सद्दया।

    कल कंठ कोकिल वद्दया।

    भ्रम भवन जीवन नासिका।

    नेसु अंजन प्रिय त्रासिका।

    झलमलति अवन त्रटंकता।

    रथ अंग अर्क विलंविता।

    चक्खु इछ्छ इछ्छइ वंकसी।

    तुछ लज्ज सैसव संकसी।

    सित असित उररि अपंगयो।

    अभ्भिसहिं षंजन वछ्छयो।

    वरु वरुणि भुव वर वरणनं।

    नव नृत्ति अलि सुत अंगनं।

    तस मध्य मृग मद विंदुजा।

    जस इंदु नंद ति सिंधुजा।

    कच वक्र सर्प ति कुंतलं।

    तस उपूपमा नहि भूतलं।

    मणि बंध पुष्प सुदीसये।

    जांनु कन्ह कालीय सीसये।

    त्रिसरावलि बनि वेनियं।

    अवलंवि अलिकुल सेनियं।

    चित चित्ति चित्रति अंबरं।

    रति जांन वर्धति संवरं॥

    हे राज गुरु! संयोगिता का यौवन जैसा बना है,उसे ध्यान देकर सुनो। उसके चरण-तल आधे अरुण हैं, मानो श्रीखंड (चंदन) ने श्री (रोली) प्राप्त की हो। उसके नख सुंदर और मिले हुए कुंद सद्दश हैं। जिनसे सुंदर शोणित झलकता है। उसके चरणाभरण नग, स्वर्ण और हीरे से जड़ित हैं और गजों और हंसों के मार्गों को उत्थापित करने वाले हैं। केशर के सुंदर रंग को खींचकर उलटे रक्खे हुए कदली के सदृश उसकी जंघाएँ हैं। उस नितंबिनी की करधनी इस प्रकार रंजन करती है मानो कामदेव की प्रत्यंचा हो। उरोजों के भार को मध्य से विभाजित करने वाली उसकी रोम-राजि स्तंभ के समान दी हुई है। अंजलियों से स्पर्श करने में उसके कुच कमल के समान हैं और उसके गौर तथा द्युतिमान मुख पर जो दोष है, वह सुंदर है। उसके मन-मंदिर में मदन संस्थित है, जो निरस्त्र होकर इस गहनतम स्थान में रहने लगा है। उसकी चोली इतनी झीनी है मानो है ही नहीं। उसकी भुजाओं की ओट में पाँच उँगलियों का सुंदर समूह है। नलिनों की आभावाले उसके दो सुंदर हाथ हैं जिनमें उँगलियों के नख इस प्रकार शोभा दे रहे हैं] मानों कुंदन के साथ कुंद संचित हों। उसकी सुंदर ग्रीवा में त्रिबली रेखाएँ हैं, जिससे ग्रीवा ऐसी लगती है मानो सुष्ठ पांचजन्य शंख हो। अधर पके बिंब हैं। उन्हें बिंब समझकर शुक-सारिका हठ-पूर्वक खंडित कर दें। उसके दाँत मोती हैं, जो रोली जैसे मसूड़ों में मुद्रित प्रतिभासित होते हैं। उसके शब्द मधु जैसे मीठे हैं, और वह कोकिल कितना मधुर बोलती है! उसकी नासिका जीवन के भ्रमों का भवन है और अंजन-प्रिय ओष्ठों को त्रास देने वाली है। उसके कानों में झुमके झिलमिलाते हैं मानो सूर्य के रथ के पहिए लटक रहे हों। उसके नयनों में बाँकी इच्छाएँ-आकांक्षाएँ सी हैं तथा थोड़ी सी लज्जा और शैशव की शंकाएँ भी हैं। इन आँखों की गहराई श्वेत और श्याम हैं, वे नयन ऐसे लगते हैं मानो बाल-खंजन उड़ने का अभ्यास कर रहे हैं। उसकी बरौनियाँ सुंदर हैं और भौहें श्रेष्ठ वर्ण वाली हैं। वे ऐसे लगती हैं मानो आँगन में नवजात भ्रमर नृत्य कर कर रहे हों। उनके मध्य जो मृगमद कस्तूरी बिंदु है, जैसे सिंधु में उत्पन्न नव चंद्रमा में मृग हो। उसके वक्र केश-कुंतल सर्प हैं जिनकी उपमा भूतल में नहीं है। शीश-फूल ऐसा दीखता है मानो कालीय नाग के सर पर कृष्ण हो। उसकी तीन लटों वाली चोटी ऐसी गुंथी हुई है मानो भौंरों की पंक्ति हो। उसके वस्त्र विचित्र प्रकार से चित्रित हैं। संपूर्ण रूप से वह ऐसी है मानो कामदेव का मंडन कर रही हो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पृथ्वीराज रासउ (पृष्ठ 256)
    • रचनाकार : चंदबरदाई
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन चिरगाँव (झाँसी)
    • संस्करण : 1963

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए