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भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि १४)

bharteshwar bahubli ras (thawani १४)

शालिभद्र सूरि

शालिभद्र सूरि

भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि १४)

शालिभद्र सूरि

और अधिकशालिभद्र सूरि

    तउ तिहिं चिंतइ राउ, चडिउ संवेगइं बाहुबले

    दूहविउ मइं वडु भाय, अविमांसिइं अविबेक वंति।।१९०।।

    धिग धिग एय संसार, धिग धिग राणिम राजसिद्धि

    एवड जीव संहार, कीधउ कुण विरोधवसि

    कीजइ कहि कुण काजि, जउ पुण बंधव आवर

    काज ईणइं राजि, धरि पुरि नयरि मन्दरिहि।।१९२।।

    सिरवर लोच करेइ, कासगि रहीउ बाहुबले

    अंसूउ अंखि भरेउ, तस पय पणमए भरह भडो।।१९३।।

    बंधव कांइ बोल, अविमांसिउं मइं किउं

    मेल्हिम भाई निटोल, इँणि भवि हुं हिव एकलु ए।।१९४।।

    कीजई आज पसाउ, छंडि छंडि छयल छलो

    हियडइ धरि विसाउ भाई अम्हे विरांसीया ए।।१९५।।

    मानई नवि मुनिराउ, मौन मेल्हइ मन्नवीय

    मुवकइ नहु नीय माण, वरस दिवस निरसण रहीय।।१९६।।

    बंभिउ सुंदरि बेउ, आवीय बंधव बूझवइं

    ऊतरी माण–गयंद, तु केसवलिसिरि अणसरइ ए।।१९७।।

    ऊपनूं केवलनाण, तु विहरह रिसहेस सिउं

    आवीउ भरह नरिंद, सिउं परगहि अवझपुरी ए।।१९८।।

    हरिषीया हीइ सुरिंद, आपण पइं उच्छव करइं

    वाजई ताल कंसाल, पडह पखाउज गमगमइं

    आवई आयुध साल, चक्क रयण तउ रंग भरे

    संख जस केकाण, गयघड रहबर राणिमहं।।२००।।

    दस दिसि वरतइं आण, भड भरहेसर गहगहइ

    रायह गच्छ सिणगार, वयरसेण सूरि पाटधरो।।२०१।।

    गुणगणहं तणु भंडार, सालिभद्र सूरि जाणीइ

    कीधउं तीणि चरितु, भरह नरेसर राउ छंदि ए।।२०२।।

    जो पढ़इ वसह वदीत सो नरो नितु नव निहि लहइ

    संवत बार (१२) एकतालि (४१) फागुण पंचमिइं एउ की उए।।२०३।।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 19)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : शालिभद्र सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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