भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि ३)
bharteshwar bahubli ras (thawani ३)
वेगि सुवेगि सु बुल्लइ सम्भलि बाहुबलि
राउत कोई तुह-तुल्लइ ईणिइं अछइ रवितलि।।७९।।
जां तव बन्धव भरह नरिंदों, जसु भुइं कंप सग्गि सुरिंदो
जीणइं जीतां भरह छ खंड, म्लेच्छ मनाव्या आण अखंड।।८०।।
भडि भंडत न भुयबलि भाजइ, गडडंतु गढि गाढ़िम गाजइ
सहस बतीस मउडाधा राय, तूंय बंधव सवि सेवइं पाय।।८१।।
चऊद रयण धरि नवई निहाण, संख न गयघडु जसु केकाण
हूंय हवडां पाटह अभिषेको, तूं य नवि आवीय कवण विवेको।।८२।।
बिण बन्धव सवि संपय ऊणी, जिम बिण लवण रसोइ अलूणी
तुम देसण उतकंठिउ राउ, नितु नितु वाट जोइ तुह भाउ।।८३।।
वडउ सहोयर अनइं वड वीर, देवज प्रणमइ साहस धीर
एक सीह अनइं पाखरीउ, भरहेसर नइं नइं परवरीउ।।८४।।
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 8)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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