भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि २)
bharteshwar bahubli ras (thawani २)
तउ तिहिं आउध साल, आवइ आउधराउ नबि
तिणि खिणि मणि भूपाल, भरह भयउ लोलावडओ।।४३।।
वारिरि वहूय अणालि, अलू आरीय अहनिसि करइ ए
अति उतपात अकालि, दाणव दल वरि दाषवइ ए।।४४।।
मति सागर किणि काजि, चक्क त (न) पुरि परवस करइ
तइंजि अम्हाइ इ राजि, धोरीय धर धरीउ धरहं।।४५।।
देव कि थंमीउ एय, कवणि कि दानव मानविहिं
एउ आखि न मुझ भेउ, वयरीय वार न लाईइ ए।।४६।।
बोलइ मन्त्रि मयंक, संभलि सामीय चक्क धरो
अवर नहीं कोई वंकु, चक्करयण रहवा तणउ।।४७।।
संकीय सुरवर सामि, भरहेसर तूयं भूय भवणे
नासइं ति सुणीय नामि, दानव मानव कहि कवणि।।४८।।
नवि मानइं तूंय आण, बाहूबलि बिहुं बाहुबले
वीरह वयर विनाणु, विसमा वहडइं वीर वरो।।४९।।
तीणि कारणि नरदेव, चक्न न आवइ नीय नयरे
विण बंधव तूय सेव, सहू कोइ सामीय साचवइ ए।।५०।।
तं ति सुणीय तीणइ तालि, कठीउ राउ सरोस भरे
भमइ चडावीय भालि, पभणइ मोडवि मूंछि मूहे।।५१।।
जुन मानइ मझ आण, कवण सु कहीइ बाहुबले
लीलहं लेसु ए राण, भंजउं भुज भारिहि भिडीय।।५२।।
स मति-सागर मंति, वलि वसुहाहिव वीन वइ
नवि मनि कीजइ खंति, बन्धव सिउ कहि कवण बलो।।५३।।
दूत पठावीयइ देव, पहिलउ वात जणावीइ ए
जु नवि आवइ देव, तु नरवर कटकई करउ।।५४।।
तं मनि मानीय राउ, बेगि सु वेगहं, आइ–सइ ए
जईय सुनंदा-जाउ, आण मनावे आपणीय।।५५।।
जां रथ जोत्रीय जाइ, सुजि आऐसिहिं नरवरहं
फिरि फिरि साहमु थाइ, वाम तुरीय वाहणि तणउ।।५६।।
आजल-काल बिराल, आवीय आडिहिं उतरइ ए
जिमणउ जम विकराल, खरू खु रव उछलीय।।५७।।
सूकीय बाउल डालि, देवि बइठीय सुर करइ ए
झंपीय झाल मझालि, धूक पोकारइ दाहिण ओ।।५८।।
डावीय डगलइ सादि, भयरव भैरव खु करइ ए
जिमण इं गमइं विषादि, फिरीय फिरीय शिव फेकरइ ए।।५९।।
वड जखनइं कालीयार, एकउ बेढुं उतरइ ए
नीजलीउ अंगार संचरतां, साहमु हुइ ए।।६०।।
काल भुयंगम काल, दंतीय दंसण दाखवइ ए
आज अखूटउ काल, षूटउ रहि रहि इम भणइ ए।।६१।।
जाइ जाणी दूत, जीवह जोषि, आगमइ ए
जेम भमंतउ भूत, गिणइ न गिरि गुह वण गहण।।६२।।
तईड नेसमि वेस, न गिणइ नइ दह नींझरण
लंधीय देस असेस, गाम नयर पुर पाटणह।।६३।।
बाहरि वहूय आराम, सुरवर नइ तां नीझरण
मणि तोरण अभिराम, रेहइ धवलीय धवलहरो।।६४।।
पोयण पुर दीसंति, दूत सुवेग सु गहरा हीउ
व्यवहारीया वसंति, धणि कणि कंचणि मणि पवरो।।६५।।
धरणि तरणि ताडंक, जेम तुंग त्रिगढुं, लहइ ए
एह कि अभिनव लंक, सिरि कोसीसां कणयमय।।६६।।
पोढा पोलि पगार, पाडा पार न पामीइं ए
संख न सीहदूं यार, दोसइं देउल द ह दिसिइं।।६७।।
पेखवि पुरह प्रवेसु, दूत पहूतउ रायहरे
सिउं प्रतिहार प्रवेसु, पामीय नरवर पय नमइ ए।।६८।।
चउकीय माणिक थंभ, माहि बइठउ बाहुबले
रूपिहिं जिसीस रंभ, चमर-हारि चालइ चमर।।६९।।
मंडीय मणिमइ दंड, मेघाड़म्वर सिरि धरिय
जस पयडे भूयुदंडि, जयवंती जयसिरि बसइ ए।।७०।।
जिम उदयाचलि सूर, तिम सिरि सोहइ मणिमुकुंटी
कसतुरीय कुसुम कपूर, कुचूंचरि महमहई ए।।७१।।
झलकइ ए कुंडल कानि, रवि शशि मंडीय किरि अवर
गंगाजल गजदानि, गाढिम गुण गज गुडअडइ ए।।७२।।
उरवरि मोतीय हार, वीरवयल करि झलहलइ ए
तवल अंगि सिणगार, खलक ए टोडरवामा।।७३।।
पहिरणि जादर चीर, कंकोलइ करिमाल करे
गुरूउ गुणि गंभीर, दीठउ अवर कि चक्कधर।।७४।।
रंजिउ चित्ति सु दूत, देखीय रणिम तसु तणीय
धन रिसहेरपूत, जयवंतु जुगि बाहुबले।।७५।।
बाहुबलि पूछेइ कुवण, काजि, तुहि आवीया ए
दूत भणइ निज काजि, भव्हेसरि अम्हि पाठव्या ए।।७६।।
वस्तु—राउ जंपइ, राउ जंपइ, सुणि न सुणि दूत
भरहखंड भूमीसरहं, भरह राउ अम्ह सहोयर
सवाकोडि कुमरिहिं सहीय, सुरकुमर तहिं अवर नरवर
मंति महाधर मंडलियं, अंतेउरि परिवारि
सामंतहसीमाड सह, कहि न कुसल सविचार।।७७।।
दूत पभणइ, दूत पभणइ, बाहुबलि राउ
भरहेसर चक्कधर, कहिं न कवणि दुहवणह किज्जइ
जिहुं लहु बंधव तूय, सरिसंगडयड त गज भीम गज्जइ
जइ अंधारइ रवि किरण, भड भंजइ वर वीर
तु भरहेंसर समर भरि, जिप्पइ माहरी धीर।।७८।।
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 6)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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