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भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि १२)

bharteshwar bahubli ras (thawani १२)

शालिभद्र सूरि

शालिभद्र सूरि

भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि १२)

शालिभद्र सूरि

और अधिकशालिभद्र सूरि

    हिवं सरस्वती धउल

    तउ तहिं बीजए दिणि सुविहाणि, उठीउ एक जी अनलवेगो

    सडवड समहरे वरस बाणि, छयल सुत छलियए छावडु

    अरीयण अंगमइ अंगोअंगि, राउ तो रामति रणि रमइं

    लडसड लाडउ चडीय चउरंगि, आरेयणि सयंवर वरइं ए।।१४४।।

    त्रूटक

    वरवरइं सयंवर वीर, आरेणि साहस धीर

    मंडलीय मिलिया जान, हय हीस मंगल गान

    हय हीस मंगल गानि गाजीय, गयण गिरि- गुह गुमगुमइं

    धमधमीय धरयल ससीय सकइ, सेस कुलगिरि कमकमइं

    धस धसीय धायई धारधा वलि, धीर वीर विहंडए

    सामंत समहरि, समु लहइं - मंडलीक मंडए।।१४।।

    धउल

    मंडए माथए महियलि राउ, गाडिम गय घड टोलव

    पिडिपर परबत प्राय, भड घड नरवए नाचवई

    काल कंवोल करि करमाल, झाझए झूझिहिं झलहलइ

    भांजए भड घड जिम जम जाल, पंचायण गिरि गडयड ए।।१४६।।

    त्रूटक

    गडयङइं गजदलि सीहु, आरेणि अकल अबीह

    धसमसीय हयदल धाइं, भडहडइं भय भडिवाइ

    भड-हडइं भय भडवाइ भुयबलि, भरीय हुइ जिम भींभरी

    तहिं चन्द्र चूडह पुत्र परबलि, अपिउ नरवइ नर नरतरी

    वसमलीय नंदण वीर वीसमू, सेल सर दिखाड

    रहु रहु रे हणि हणि ... भणंतू अपड पायक पाडए।।१४७।।

    धउल

    पाडीय सुखेय सेणावए दन्त, पूठिहि निहणीय रणरणीय

    सूर कुमारह राउ पेखंत, भिरडए भूयदंड बेउ...

    नयणिहिं निरसीय कुपीयउ राउ, चक्करयण तउ संभरइ

    मेल्हइए तेह प्रति अति सकसाउ, अनलवेगो तहिं चिंतवइ ए।।१४८।।

    त्रूटक

    चिंतवईय सुहडह राउ, जो अई उषू टऊं आउ

    हिव मरण एह जि सीम, रंजइअ चक्रवृति जीम

    रंजवईय चक्रवृति जीम इम, भणि चकु मुट्ठिहिं षडषली

    संचरिउ सूरउ सूर मंडलि, चकु पुहचइ तहिं वली

    षडषडीय नंदण चन्द्र चूडह, चन्द्रमंडल मोह

    झलहलीय झालि झमालि तुट्ठिहिं, चक्क तहिं तहिं रोह ए।।१४९।।

    धउल

    रोहीउ राउत जाइ पातालि, विज्जाहर विज्जा बलिहिं

    चक्क पहूचए पूठि तीणि तालि, बोलए बलवीय सहस जसो

    रे रे रहि रहि कुपीउ राउ, जित्थु जाइसि जित्थु मारिवु

    तिहूयणि कोइ अछइ उपाय, जय जोषिम जीणइ जीवीइ ए।।१५०।।

    त्रूटक

    जीविवा छंडीय मोह, मनि मरणि मेल्हीय थोह

    समरीय तु तीणि ठामि, इकु आदि जिणवर सामि

    [इकु आदि जिणवर सामि] समरीय, वज्जपंजर अणसरइ

    नरनरीउ पाषलि फिरीउ तस सिरू, चक्क लेइ संचरइ

    पयकमल पुज्जइ भरह भूपति, बाहुबलि बल खलभलइ

    चक्रपाणि चमकीय चींति कलयलि, कलह कारिणि किंलगिलइ।।१५१।।

    धउल

    कल गिलइ चक्रधर सेन संग्रामि, बोलए कवण सु बाहुबले

    तउ पोयण पुर केरउ सामि, बरवहं दिसए दस गुण

    कवण सो चक्क रे कवण सो जाख, कवणसु कहीइए भरह राउ

    सेन संहारीय सोधउं साष, आज मल्हाउं रिसह वंसो

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 15)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : शालिभद्र सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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