(छंद गीत मालती)
चित्र बुद्धि विचित्र चित्रै रूप रंभा आगरी।
अति गौर चंपक वरन कनकहिं दीप दुति की नागरी॥
सुकुमारि कुँवरि किसोर कोंवल नागवल्ली सी लीखी।
तहँ ललित लटकत चारु चोटी देखि तिहि धावत सिखी॥
परवीन पूरन चंद बदनी बंक जुग भृकुटी लसैं।
छुटि अलक लटकि कपोल पर जनु कमल अलि अबली बसैं॥
मृग मीन खंजन नैन अंजन चित्त रंजन सोहई।
विषधार बान बिलोल बरुनी देखि मनमथ मोहई॥
मृद हास मंडित अधर विद्रुम दसन दुति जनु हीर को।
रद बीच दाड़िम मुक्त झलकत चिंचु नासा कीर को॥
तहँ कनक मनि मय करन कुंडल चिबुक चवन विराजही।
मनि मंड कंठ मयूर ग्रीवाँ हार हियँ छवि छाजही॥
वर बाल वाहु मृनाल सी कर कंज कोमल सोहई।
रंग अरुन करतल हरत जिहिं देखि मुनि मन मोहई॥
मनि मुद्रिका बनि अंगुली कर किसल कोंवल अत्तियाँ।
तहँ दिपत नख जनु दीप हैं मनौ रंभ दंपति बत्तियाँ॥
अति कठिन उठत उरोज उन्नत मनहुँ संभु स्वयंभु हैं।
कटि छीन केहरि भृङ्ग लज्जति जंघ रंभा खंभु हैं॥
पद पदम पदमिनि रूप सेवति कुनित नूपुर सज्जियौ।
जहँ जटित मरकत नील मनि कर भँवर बालक लज्जियौ॥
- पुस्तक : रसरतन (पृष्ठ 75)
- संपादक : शिवप्रसाद सिंह
- रचनाकार : पुहकर
- प्रकाशन : नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
- संस्करण : 1963
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