वीरेन डंगवाल का परिचय
जन्म : 05/08/1947 | टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड
निधन : 05/09/2015
समकालीन कवि वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त 1947 को कीर्तिनगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा के बाद उन्होंने प्राध्यापन का कार्य किया और शौक़िया पत्रकारिता भी की।
वीरेन डंगवाल की कविता-यात्रा की शुरुआत 1991 में आए ‘इसी दुनिया में’ संग्रह से हुई हालाँकि तब तक ‘रामसिंह’, ‘पीटी उषा’, ‘मेरा बच्चा’, ‘गाय’, ‘भूगोल-रहित’, ‘दुख’, ‘समय’ और ‘इतने भले नहीं बन जाना साथी’ जैसी कविताओं ने उन्हें मार्क्सवाद की ज्ञानात्मक संवेदना से अनुप्रेरित ऐसे प्रतिबद्ध और जन-पक्षधर कवि की पहचान दे दी थी, जिसकी आवाज़ अपने समकालीनों से कुछ अलहदा और अनोखी थी और अपने पूर्ववर्ती कवियों से गहरा संवाद करती थी।
बक़ौल विष्णु खरे ‘‘वीरेन डंगवाल हिंदी कवियों की उस पीढ़ी के अद्वितीय, शीर्षस्थ हस्ताक्षर माने जाएँगे जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जन्मी और सुमित्रानंदन पंत के बाद ‘पहाड़’ या उत्तरांचल के सबसे बड़े आधुनिक कवि। वीरेन की कई कविताएँ इसकी गवाह हैं कि समसामयिक भाषा और शैली का कवि होते हुए छंद और प्रास पर भी उनका असाधारण, अनायास अधिकार था और वह जब चाहते तब उम्दा, मंचीय गीत लिख सकते थे। इसमें वह अपने प्रशंसकों को नागार्जुन की याद दिलाते थे, जिनसे उन्होंने दोनों तरह की कविताओं में बहुत कुछ सीखा। वह स्वयं अपने को निराला, मुक्तिबोध, त्रिलोचन, शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, नाज़िम हिकमत, मार्क्स, ब्रेख्त, वान गोग, चंद्रकांत देवताले, ग़ालिब, जयशंकर प्रसाद, मंगलेश डबराल, शंकर शैलेंद्र, सुकांत भट्टाचार्य, भगवत रावत, मनोहर नायक, आलोकधन्वा, भीमसेन जोशी, मोहन थपलियाल, अजय सिंह, गिरधर राठी, नीलाभ, रामेंद्र त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह, पंकज चतुर्वेदी, डॉ नीरज, लीलाधर जगूड़ी, सुंदरचंद ठाकुर तथा हरिवंशराय बच्चन आदि की काव्य, संगीत तथा मैत्री की राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय परंपरा से सचेतन, निस्संकोच रूप से जोड़ते थे। इन सब के नाम बाक़ायदा उनकी रचनाओं में किसी-न-किसी तरह आते हैं। वीरेन की कविता का वैविध्य तरद्दुद में डालता है। लेकिन इससे बड़ी ग़लती कोई नहीं हो सकती कि हम वीरेन डंगवाल को सिर्फ़ कवियों, कलाकारों और मित्रों का अंतरंग कवि मान लें। उनके तीन संग्रहों ‘‘इसी दुनिया में’’ (1991),‘‘दुश्चक्र में स्रष्टा’’ (2002) तथा ‘‘स्याही ताल’’ (2009) की 188 कविताएँ, जिनमें से दस को भी कमज़ोर कहना कठिन है, संपूर्ण भारतीय जीवन से भरी हुई हैं जिसके केंद्र में बेशक संघर्षरत, वंचित, उत्पीड़ित हिंदुस्तानी मर्द-औरत-बच्चे तो हैं ही, एक लघु-विश्वकोष की तरह अंडज-पिंडज-स्वेदज-जरायुज, स्थावर-जंगम भी हैं। हाथी, मल्लाह, गाय, गौरैया, मक्खी, मकड़ी, ऊँट, पपीता, समोसे, इमली, पेड़, चूना, रातरानी, कुए, सूअर का बच्चा, नींबू, जलेबी, तोता, आम, पिद्दी, पोदीना, घोड़े, बिल्ली, चप्पल, भात, रद्दीवाला, फ्यूँली का फूल, पान, आलू, कद्दू, बुरुंस, केले—यह शब्द सिर्फ़ उनकी रचनाओं में नहीं आए हैं बल्कि उनकी कविताओं के विषय हैं। निराला, नागार्जुन और त्रिलोचन से सीखते हुए वीरेन अपने इन तीनों गुरुओं से आगे जाते प्रतीत होते हैं।’’
वीरेन डंगवाल ने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत आदि विश्व कवियों की कविताओं का अपनी विशिष्ट शैली में अनुवाद का दुर्लभ कार्य भी किया है।
उन्हें ‘इसी दुनिया में’ कविता-संग्रह के लिए रघुवीर सहाय समृति पुरस्कार और श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार (2004) और शमशेर सम्मान प्राप्त हुआ। मंगलेश डबराल के संपादन में ‘कविता वीरेन’ शीर्षक से वीरेन डंगवाल की नई-पुरानी 227 कविताओं का संकलन किया गया है।