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सूफ़ी संत। शाह निज़ामुद्दीन चिश्ती की शिष्य परंपरा में 'हाजी बाबा' के शिष्य। भाषा में अवधी के साथ अरबी-फ़ारसी की शब्दावली का प्रयोग।

सूफ़ी संत। शाह निज़ामुद्दीन चिश्ती की शिष्य परंपरा में 'हाजी बाबा' के शिष्य। भाषा में अवधी के साथ अरबी-फ़ारसी की शब्दावली का प्रयोग।

उसमान का परिचय

उसमान ईस्वी की सत्रहवीं शताब्दी में वर्तमान थे। हिंदी के सूफ़ी प्रेमाख्यानक काव्यों में उनकी रचना ‘चित्रावली’ का प्रमुख स्थान है। ‘चित्रावली’ के सिवा इनकी किसी और रचना का पता अभी तक नहीं चला है। हिंदी के अन्य सूफ़ी कवियों की तरह इनके भी जीवन के परिचय का एकमात्र आधार इनकी रचना ‘चित्रावली’ है। इन्होंने अपनी इस रचना में अपना जो भी परिचय दिया है, उससे पता चलता है कि ये सूफ़ी मत से प्रभावित तो थे, लेकिन मलिक मुहम्मद जायसी की तरह ये सूफ़ी साधक नहीं थे। ‘चित्रावली’ की रचना इन्होंने इसलिए की कि इनका यश अमर रहे। अपनी रचना का उद्देश्य उन्होंने जिस तरह प्रकट किया है, उसका भाव यह है: “भगवान की कृपा से मैंने चार अक्षर पढ़ लिए हैं और मैंने देखा है कि संसार में सब कुछ तो नष्ट हो जाता है, लेकिन वाणी अमर है और यह संसार में अमृत के समान है जिसे पाकर कवि अमर हो जाते हैं।” अतएव ये कहते हैं—

“मोहूं चाउ उठा पनि हीए।
होऊँ अमर यह अमिरित पीए।”

उसमान ग़ाज़ीपुर के निवासी थे तथा इनके पिता का नाम शेख हुसैन था। उसमान के अनुसार ग़ाज़ीपुर नगर सुख-शांति और समृद्धि से परिपूर्ण था। नगर में नाना प्रकार के गुणों से विभूषित लोग निवास करते थे। ज्ञानी, वीर, पिंगल और संगीत के जानकार सभी प्रकार के लोग ग़ाज़ीपुर में थे। नाना प्रकार की जातियों, जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, मुग़ल, पठान, वैश्य और शूद्र आदि से ग़ाज़ीपुर सुशोभित था। उसमान ने अपने अन्य चार भाइयों का भी परिचय दिया है। कवि ने बतलाया है कि इनके एक भाई का नाम शेख अजीज था जो बहुत बड़े विद्वान्, शीलवान तथा दानी थे। दूसरे भाई इमानुल्लाह योग-मार्ग की साधना में रत रहते थे। तीसरे भाई शेख फैजुल्लाह बहादुर सिपाही थे और चौथे भाई शेख हसन संगीत के अच्छे जानकार थे।

उसमान बादशाह जहाँगीर के काल में हुए। उन्होंने ‘चित्रावली’ में शाहे वक्त की प्रशंसा में जहाँगीर का नाम लिया है। जहाँगीर का शासनकाल सन् 1605 ई. से सन् 1627 ई. है। ‘चित्रावली’ की रचना जहाँगीर के शासनकाल में सन् 1613 ई. में हुई। उसमान ने ‘चित्रावली’ में जहाँगीर की न्यायप्रियता और उसके घंटे का उल्लेख किया है। उस काल में बादशाह के दरबार में आने वाले विदेशियों का भी उसमान ने वर्णन किया है। अंग्रेजों का नाम लेकर उनके आचार-विचार, खान-पान आदि की भी चर्चा की है। उसमान ने इस देश के बहुत से नगरों का भी नाम लिया है। इससे उसमान की बहुज्ञता का परिचय मिलता है। तत्कालीन समाज, रस्म-रिवाज, उत्सव-अनुष्ठान आदि का उसमान ने सुंदर चित्रण किया है।

समाज में प्रचलित आचार-विचार आदि का उसमान ने सूक्ष्म निरीक्षण किया था। उसमान में कवि प्रतिभा तो थी ही साथ ही अपने आसपास की दुनिया को देखने की पैनी दृष्टि भी थी। इस रचना से कवि उसमान की काव्य-प्रतिभा का पता चलता है। वह सहज भाव से अपनी कहानी कहता है। प्रसिद्ध सूफ़ी कवियों में कवि उसमान को अंतिम सूफ़ी कवि कहा जा सकता है, जिसमें विचारों की उदारता थी। उसने किसी प्रकार की धार्मिक संकीर्णता का परिचय नहीं दिया है, जैसा बाद के सूफ़ी कवि नूर मुहम्मद, शेख निसार आदि में पाते हैं।

कवि सूफ़ी परंपरा के साथ-साथ भारतीय विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित था। नगर, उद्यान, नायिका के सौंदर्य आदि के वर्णन में कवि ने परंपरा का पालन पूरी मात्रा में किया है।

उसमान ने अपने गुरु का नाम बाबा हाजी बतलाया है । वे चिश्ती-संप्रदाय के थे। हिंदू और मुसलमान समान रूप से उन पर श्रद्धा करते थे। उसमान ने उन्हें सिद्धि प्रदान करने वाला बतलाया है। चिश्ती संप्रदाय की जिस शाखा में बाबा हाजी अंतर्भुक्त थे, उसके पीर नारनोलि के शाह निजाम चिश्ती थे। कवि उसमान के जीवन के संबंध में इससे अधिक ज्ञात नहीं, वैसे ‘चित्रावली’ के अध्ययन से पता चलता है कि वे विनयी, गुणी तथा उदार प्रकृति के थे। कवि की दृष्टि से हिंदी के सूफ़ी कवियों में जायसी के बाद उसमान को ही स्थान दिया जा सकता है।

‘चित्रावली’ में पद-पद पर कवि की काव्य-प्रतिभा, वाग्वैदग्ध्य और रचना-कौशल का परिचय मिलता है। कवि बड़े परिश्रम से काव्य-रचना में प्रवृत्त हुआ और इसमें कोई संदेह नहीं कि उसे सफलता भी मिली। कवि ने स्वयं कहा है—

‘कहत करेज लोहू भा पानी।
सोई जान पीर जिन्ह जानी॥
एक एक वचन मोति जनु पोवा।
कोऊ हँसा कोऊ सुनि रोवा॥’

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