सरहपा की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 1
पाणि चलणि रअ गइ, जीव दरे ण सग्गु।
वेण्णवि पन्था कहिअ मइ, जहिं जाणसि तहिं लग्गु॥
हाथ, पैर, शरीर ये सब धूल में समा जाते हैं। ये ही जीव की स्थिति है। स्वर्ग नहीं है। सरह कहते हैं—मैंने (स्वर्ग तथा नर्क) दोनों मार्ग बता दिए हैं, जो अच्छा लगे, उस पर चल।
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- व्याख्या