संत कमाल का परिचय
कमाल कबीर के पुत्र प्रसिद्ध हैं। इनके संबंध में कबीर के नाम से यह उक्ति बहुत प्रसिद्ध है कि 'बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।' इसके कारण कमाल को बड़ी उपेक्षा की दृष्टि से देखा गया है। पता नहीं इस उक्ति का कारण क्या था, अथवा यह कबीर की उक्ति है भी या नहीं। कहा जाता है कि कबीर की मृत्यु के बाद उनके भक्तों ने कमाल से उनके नाम पर पंथ चलाने को कहा, जिससे इनकार करने पर उन्होंने यह दोहा कहा; जो हो, यह तो सत्य है कि कमाल के बाद कबीर के वंश का कोई पता नहीं चलता। परंतु उक्त दोहे में जो हरि का सुमिरन छोड़कर घर माल ले आने का आक्षेप उन पर है उससे जान पड़ता है कि वे कबीर के मार्ग और उपदेश पर नहीं चलते थे।
'संत गाथा' नाम की पुस्तक में इनकी जो उक्तियाँ संकलित हैं, उनकी भाषा में खड़ीबोली का रूप बहुत साफ़ दिखाई पड़ता है। उनके संबंध में अभी और भी छानबीन करने की आवश्यकता है। परंतु उन उक्तियों में प्रपंच छोड़कर अंत:करण को शुद्ध रखने, राजा रंक को समान समझने और भीतर बाहर एक ज्योति के प्रकाश से पूर्ण होने आदि का उल्लेख जिससे उनके विचार एक उच्च कोटि के संत के जान पड़ते हैं। इनके जन्म एवं मृत्यु के संवतों के विषय मे कुछ ज्ञात नहीं।