राधावल्लभ त्रिपाठी का परिचय
मूल नाम : राधावल्लभ त्रिपाठी
जन्म : 15/02/1949 | राजगढ़, मध्य प्रदेश
राधावल्लभ त्रिपाठी का जन्म 15 फ़रवरी 1949 को मध्य प्रदेश के राजगढ़ ज़िले में हुआ। उनके पिता संस्कृत और हिंदी के मर्मज्ञ और कवि-समीक्षक थे। उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से संस्कृत कवियों के व्यक्तित्व के विकास विषय पर पीएच.डी. और प्राचीन बारात में रंगमंच के उद्गम एवं विकास विषय पर डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1970 से उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया और इस यात्रा में शोध अध्येता से आचार्य तक और अधिष्ठाता से विभागाध्यक्ष तक विभिन्न भूमिकाओं का निर्वहन किया। उन्होंने शिल्पाकार्न विश्वविद्यालय, बैंकॉक एवं कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में संस्कृत के अतिथि आचार्य और राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में कुलपति के रूप में भी सेवा दी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने देश-विदेश में आयोजित विभिन्न संस्कृत सम्मेलनों में भी भागीदारी की है।
लेखन की प्रवृत्ति उनमें किशोर वय से ही उभरने लगी थी और 6 दशकों में विस्तृत अपनी रचना-यात्रा में गद्य, पद्य, नाटक, कथा, उपाख्यान, उपन्यास, राग-काव्य, अलंकारशास्त्र, समीक्षा, शोध, अनुवाद जैसी विभिन्न विधाओं में विपुल योगदान किया है। संस्कृत, हिंदी और अँग्रेज़ी में उनकी सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें ‘संस्कृत कविता की लोकधर्मी परंपरा’, ‘काव्यशास्त्र और काव्य’, ‘लेक्चर्स ऑन नाट्यशास्त्र विश्वकोश’ (चार खंड) आदि विशेष चर्चित रहे हैं।
‘सन्धानम्’, ‘लहरीदशकम्’, ‘सम्प्लवः’, ‘समष्टि’ आदि उनके प्रमुख संस्कृत काव्य-संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त संस्कृत में उनके तीन मौलिक उपन्यास, दो कहानी-संग्रह, तीन पूर्णाकार नाटक तथा एक एकांकी-संग्रह भी प्रकाशित हैं जिनमें ‘प्रेमपीयूषम्’, ‘प्रेक्षणसप्तकम्’, ‘नाट्यमण्डपम्’, ‘विक्रमचरितम्’, ‘अभिनवशुकसारिका’ आदि शामिल हैं। ‘दमयन्ती’ एवं ‘भुवनदीप’ (नाटक), ‘पूर्वरंग’, ‘पागल हाथी’ एवं ‘जो मिटती नहीं है’ (कहानी-संग्रह), तथा ‘सत्रन्त’ एवं ‘विक्रमादित्य कथा’ (उपन्यास) हिंदी में रचित उनकी मूल रचनाएँ हैं। उन्होंने संस्कृत की करीब दो दर्जन कृतियों के हिंदी अनुवाद भी किए हैं जिनमें ‘वेदांतसार’, ‘कुमारसंभवम्’, ‘कुंदमाला’, ‘वेणीसंहार’ आदि शामिल हैं। उन्होंने ‘कामसूत्र’ का अँग्रेज़ी अनुवाद किया है और उसपर टीका लिखी है। ‘नवस्पंदः’, ‘आयाति’, ‘षोडसी’, ‘शुकसारिका’ आदि उनके द्वारा संपादित कृतियाँ हैं। समय-समय पर विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विद्वत-सम्मेलनों के आयोजनों में उनकी मुखर भूमिका रही है और उन्होंने नाट्य परिषद्, मुक्तस्वाध्यायपीठ, शास्त्रानुशीलनकेंद्र, पांडुलिपि संग्रहालय आदि अनेक अकादमिक संस्थाओं, अध्ययन केंद्रों एवं परिषदों की स्थापना में योगदान किया है।
उन्हें साहित्यिक-सांस्कृतिक योगदान के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार, शंकर पुरस्कार, मीरा सम्मान सहित विभिन्न संस्थाओं एवं अकादमियों के तीन दर्जन से अधिक पुरस्कार एवं प्रशस्तियाँ प्रदान की गई हैं।