नेवाज का परिचय
हिंदी साहित्य के इतिहासकारों ने नेवाज नाम के तीन कवियों का उल्लेख किया है। ये नेवाज ब्राह्मण थे और उनकी जन्म भूमि अंतर्वेद थी। 'बुंदेल वैभव' के रचयिता ने इनका जन्म काल 1681 ई. और कविता काल 1703 ई. बताया है। कहा जाता है कि ये औरंगज़ेब के पुत्र आजमशाह और पन्ना नरेश महाराज छत्रसाल के आश्रित कवि थे। ऐसा प्रसिद्ध है कि छत्रसाल के यहाँ इन्हें 'भगवत कवि' के स्थान पर नियुक्त किया गया था, जिस पर भगवत कवि ने यह फबती छोड़ी थी :
'भली आजु कलि करत हौ, छत्रसाल महराज।
जहँ भगवत् गीता पढ़ी, तहँ कवि पढ़त नेवाज॥'
इनकी दो रचनाएँ 'छत्रपाल-विरुदावली' और 'शकुंतला उपाख्यान' प्राप्त हैं। इनके फुटकर कवित्त भी बहुत स्थानों पर संग्रहीत मिलते हैं। 'शकुंतला उपाख्यान' कालिदास के 'अभिज्ञान शाकुंतलम' का ब्रजभाषा के कवित्त, सवैया, दोहा, चौपाई आदि में ही दिया गया भावानुवाद है। इस ग्रंथ में इनकी काव्य-कुशलता और सहृदयता का ज्ञान होता है। इनकी भाषा परिमार्जित, व्यवस्थित और भावों के उपयुक्त है। उसमें व्यर्थ शब्द और वाक्य बहुत ही कम मिलते हैं। इनके अच्छे शृंगारी कवि होने में संदेह नहीं। संयोग शृंगार में ये कहीं-कहीं अश्लीलता की सीमा तक चले जाते हैं। नेवाज की शृंगारिक रचनाएँ प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती हैं। निस्संदेह शृंगारिक चित्रों की ऐंद्रिय उद्भावना की दृष्टि से नेवाज का स्थान रीति परंपरा के कवियों में बेजोड़ एवं अप्रतिम है। प्रेम की ऋजु एवं सरल भावाभिव्यक्तियों की चर्चा करते समय नेवाज का नाम गौरव के साथ लिया जायेगा।