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हेलेन सिक्सु

1937

हेलेन सिक्सु की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 11

जाओ, उड़ो, तैरो, कूदो, उतरो, पार करो, अज्ञात से प्रेम करो, अनिश्चित से प्रेम करो, जिसे अब तक नहीं देखा है—उससे प्रेम करो… किसी से भी प्रेम मत करो—तुम जिसके हो, तुम जिसके होगे—अपने आपको खुला छोड़ दो, पुराने झूठ को हटा दो, जो नहीं किया उसे करने की हिम्मत करो, वही करने में तुम्हें ख़ुशी मिलेगी… और प्रसन्न रहो, डर लगने पर वहाँ जाओ जहाँ जाने से डरते हो, आगे बढ़ो, ग़ोता लगाओ, तुम सही मार्ग पर हो।

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केवल वही पुस्तक लिखने योग्य है जिसे लिखने का हममें साहस नहीं है। जिस पुस्तक को हम लिख रहे होते हैं, वह हमें आहत करती है, हमें कँपाती है, शर्मिंदा करती है, ख़ून निकालती है।

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मेरा मानना है कि कुछ ऐसे लोग हैं जिनमें चीज़ों को आपस में मिलाकर उन्हें पुनर्जीवित करने की ताक़त होती है।

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हमें उस झूठी स्त्री को मार देना चाहिए जो जीवित स्त्री को साँस लेने से रोकती है।

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लेखन कहने योग्य बातों को कहने में सफल होने का उत्कृष्ट, मुश्किल और ख़तरनाक ज़रिया है।

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