हरिनारायण व्यास का परिचय
मूल नाम : हरिनारायण व्यास
जन्म : 14/10/1923 | सुंदरसी, मध्य प्रदेश
निधन : 14/01/2013 | पुणे, महाराष्ट्र
‘दूसरा सप्तक’ में शामिल हरिनारायण व्यास का जन्म 14 अक्टूबर 1923 को मध्य प्रदेश के सुंदरसी में हुआ। उनका पूरा नाम हरिनारायण घनश्याम व्यास था। उनकी शिक्षा उज्जैन और बड़ौदा में हुई और फिर पुस्तकालय में नौकरी करने लगे।
गाँव की घटनाओं और व्यक्तियों पर बचपन से ही तुकबंदियाँ करने लगे थे। युवपन में अपने मामा गोपालवल्लभ उपाध्याय के बौद्धिक प्रभाव में साहित्य की ओर झुकाव हुआ। उज्जैन में मित्रवर मुक्तिबोध और गुरुवर प्रभाकर माचवे के संपर्क में कवि-जीवन को चेतना प्राप्त हुई। गिरिजाकुमार माथुर से भी प्रभावित हुए।
कविताओं के बारे में उनकी मान्यताएँ ‘दूसरा सप्तक’ में प्रकाशित उनके वक्तव्य में प्रकट हुई हैं। वह मानते थे कि ‘‘कविता के प्रतीक यथासाध्य जीवन के सान्निध्य से लिए जाने चाहिए...। भाषा जीवन और समाज का एक प्रबल शस्त्र है, किंतु उसे जीवन से अलग होकर नहीं, जीवन में ही रहना है। यदि कविता की भाषा दुर्बोध रही तो उसका कर्म—अर्थात लड़ने में मनुष्य का सहायक होना—अधूरा ही रह जाता है...। पुरानी मान्यताओं, पुराने शब्दों, पुरानी कहावतों को नए अर्थ से विभूषित करके कविता में प्रयोग करने से पाठक की अनुभूतियों को छूने में सहायता मिलती है।’’ उन्होंने कविता को सपनों का संसार कहा और कहा कि यदि यह संसार नए जीवन के क्रीड़ा-स्थल नए जगत की रंगीनी से सिक्त हो तो कवि का कर्म और उसके सामाजिक दायित्व सार्थक हो जाते हैं।
‘मृग और तृष्णा’, ‘त्रिकोण पर सूर्योदय’, ‘बरगद के चिकने पत्ते’, ‘आउटर पर रुकी ट्रेन’, ‘निद्रा के अनंत में जागते हुए’ उनके काव्य-संग्रह हैं।