ज्ञानेंद्रपति का परिचय
हिंदी के विलक्षण कवि-व्यक्तित्व कहे जाते ज्ञानेंद्रपति का जन्म 1 जनवरी 1950 को पथरगामा, झारखंड में हुआ था। वह दसेक वर्ष बिहार सरकार के अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे, फिर कूलवक़्ती कवि के रूप में सक्रिय हुए। उन्हें ‘निराला परंपरा’ का कवि कहा गया है जो कविता के नहीं निराला द्वारा प्रस्तावित मुक्तछंद के कवि हैं। भाषा बरतने में वह समकालीनों के बीच अपनी तरह के अकेले कवि हैं जो दुस्साहसी शब्द निर्माता भी हैं।
उनके कवि के परिचय में कहा गया है कि ‘‘दरअस्ल, ज्ञानेंद्रपति को पढ़ना बनते हुए इतिहास के बीच से गुज़रना ही नहीं, युग के कोलाहल के भीतर से छन कर आते उस मंद्र स्वर को सुनना है, इतिहासों से जिसकी सुनवाई नहीं होती; यह नश्वरताओं की भाषा से शाश्वत का द्युति-लेख पढ़ना है।’’
‘आँख हाथ बनते हुए’, ‘शब्द लिखने के लिए ही यह काग़ज बना है’, ‘गंगातट’, ‘संशयात्मा’, ‘भिनसार’ (2006), ‘कवि ने कहा’, ‘मनु को बनाती मनई’, ‘गंगा-बीती’ और ‘कविता भविता’ उनके प्रकाशित काव्य-संग्रह हैं। ‘एकचक्रानगरी’ उनका काव्य-नाटक है और ‘पढ़ते-गढ़ते’ में उनके कथेतर गद्य का संकलन हुआ है।
वर्ष 2006 में ‘संशयात्मा’ शीर्षक कविता-संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह ‘पहल सम्मान’, ‘बनारसीप्रसाद भोजपुरी सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’ आदि से सम्मानित किए गए हैं।