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ज्ञान चतुर्वेदी

1952

समादृत कथाकार। व्यंग्य-लेखन के लिए प्रतिष्ठित।

समादृत कथाकार। व्यंग्य-लेखन के लिए प्रतिष्ठित।

ज्ञान चतुर्वेदी का परिचय

जन्म : 02/08/1952

 

प्रतिष्ठित व्यंग्यकार-उपन्यासकार ज्ञान चतुर्वेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के झाँसी ज़िले के मऊरानीपुर में 2 अगस्त, 1952 को हुआ। पिता चिकित्सक थे। उन्होंने भी चिकित्सा के क्षेत्र में करियर बनाया। वह मध्य प्रदेश में ख्यात हृदयरोग विशेषज्ञ रहे और भारत सरकार के बी.एच..एल. से संबद्ध चिकित्सालय में तीन दशक से अधिक की सेवा देने के बाद शीर्ष पद से सेवानिवृत्त हुए।

 

साहित्यिक संस्कार पारिवारिक माहौल में प्राप्त हो गया था। उनके नाना ओरछा के राजकवि थे। उनके मामा भी प्रसिद्ध कवि थे। घर में कवि गोष्ठियों का आयोजन हुआ करता था जहाँ मैथिलीशरण गुप्त जैसे कवियों का आना-जाना रहा। सातवीं कक्षा में पंचवटी पढ़ी और उससे प्रेरणा लेकर बावन छंदों का खंडकाव्‍य लिख दिया। इस तरह उनके लेखन की शुरूआत हुई। ग्‍यारहवीं कक्षा में थे तो जासूसी उपन्‍यास भी लिखे। उर्दू साहित्य में दिलचस्पी हुई जो उन दिनों देवनागरी लिपि में छपकर हर चौक-चौराहे पर आसानी से मिल जाया करती थी। 1965 में हरिशंकर परसाई को पहली बार पढ़ा और इतने अभिभूत हुए कि तय कर लिया कि व्‍यंग्‍य-विधा को ही अपनाना है। उन्हीं दिनों शेखर जोशी, श्रीलाल शुक्ल आदि के लेखन से भी अवगत हुए और प्रेरणा ग्रहण की। अमेरिकन ह्यूमर को समझने के लिए कई अमेरिकी व्यंग्यकारों को भी पढ़ा।

 

सक्रिय लेखन की शुरुआत सत्तर के दशक में धर्मयुग पत्रिका के साथ हुई। दस वर्षों तक इंडिया टुडे तथा नया ज्ञानोदय में नियमित स्तंभ लेखन किया। इसके अतिरिक्त  राजस्थान पत्रिका औरलोकमत समाचार जैसे दैनिक पत्रों में भी लंबे समय तक व्यंग्य स्तंभ लेखन किया। अभी तक हज़ार से अधिक व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है जिनमें से कई अलग-अलग ज़िल्दों में संकलित कर प्रकाशित किए गए हैं। नरक-यात्रा उनका चर्चित उपन्यास है जिसमें भारतीय चिकित्सा शिक्षा एवं व्यवस्था की ख़ामियों पर प्रहार किया गया है। इसके पश्चात् बारामासी, ‘मरीचिका, ‘हम न मरब, ‘पागलख़ाना जैसे उपन्यास प्रकाशित हुए। व्यंग्य-उपन्यास के क्षेत्र में उन्होंने मौलिक योगदान किया है। प्रेत कथा, ‘दंगे में मुर्गा, ‘मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, ‘बिसात बिछी है, ‘ख़ामोश! नंगे हमाम में हैं, ‘प्रत्यंचा और बाराखड़ी उनके कुछ चर्चित व्यंग्य-संग्रह हैं। उन्होंने शरद जोशी के प्रतिदिन के प्रथम खंड का अंजनी चौहान के साथ संपादन भी किया है।

 

वह व्यास सम्मान, राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान सहित विभिन्न पुरस्कारों-प्रशस्तियों से सम्मानित किए गए हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया है। कुछ पत्रिकाओं ने उन पर विशेषांक प्रकाशित किए हैं।

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