द्विवेदी युग के महत्त्वपूर्ण चिंतक और गद्यकार।
हरिणचरणक्षुण्णोपांता सशाद्वलनिर्झराः, कुसुमकलितैर्विष्वग्वातैस्तरंगितपादपाः॥ विविधविहगश्रेणीचित्रस्वनप्रतिनादिता, मनसि न मुद दध्यु. केपां शिवा वनभूमयः॥ —सुभाषित। भावार्थ—जहाँ हरी-हरी दूब का गलीचा सा बिछा है, जिस पर हिरनों के खुरों के चिह्न चिह्नित
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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