कोट कसूता सरवे ऊजड़
coat kasuta sarwe ujaD
कोट कसूता सरवे ऊजड़ देस कुबुद्धि राई।
गांव रो मांझी सरवे ऊजड़, लोभ पङ्यो लुटाई।
घर महेली सरवे ऊजड़, पूत कुळछणी माई।
बळदां हाळी सरवे ऊजड़, लुभकर खड़ियो ताई।
फौजां मांझी सरवे ऊजड़, तीखी बार ज धाई।
खेतां राखो सरवे ऊजड़, फिर हांड्यो रूळहाई।
गाय न गोखी सीख न सिंवरण, न चीन्ह हरियाई।
बै विमुणा विमुख हांडै, कण बिन कूकस गा’ही।
रण में पंछी तिसियो मरियो, ओसर चूको डाई।
रण में रूंखां सुरला ऊजड़, बाढ़ सबै बणराई।
सांभळ मुल्ला सांभळ काजी, सांभळ बकर कसाई।
किण फरमाई बकरी विरदो, किण फरमाई गाई।
गाय गोरखनै इसी पियारी, पूत पियारो माई।
फिर चरि आवै सांझ दुहावै, राख लेवै सरणाई।
थे मत जाणो रूळि फिरै है, चांदो सूरज गिंवाळी।
विरियां कुविरियां भूखा काढ्या, तो धरम कठै सूं आई।
थे मत जाणो कूड़ कथ्यो है, कथियो है अरथाई।
गुरु प्रसादे गोरख वचने, (श्रीदेव) जसनाथ(जी) बांच सुणाई।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 192)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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