उर में माखन-चोर गड़े
ur mein makhan chor gaDe
उर में माखन-चोर गड़े।
अब कैसेहू निकसत नहिं ऊधो! तिरछे ह्वै जु अड़े॥
जदपि अहीर जसोदानंदन तदपि न जात छँड़े।
वहाँ बने जदुबंस महाकुल हमहिं न लगत बड़े।
को वसुदेव, देवकी है को, ना जानै औ बूझैं।
सूर स्यामसुंदर बिनु देखे और न कोऊ सूझैं॥
हे उद्धव, हमारे हृदय में मक्खन चोर का त्रिभंगी रूप ऐसा गड़ गया है, जो निकालने पर किसी भी प्रकार नहीं निकल पा रहा है। आशय यह है कि वे टेढ़े ढंग से हृदय में अड़ गए हैं। सरल हृदय में त्रिभंगी मूर्ति ऐसी अड़ गई है कि उसे कैसे निकाला जाए? आपके कथनानुसार वे यशोदा के पुत्र और अहीर हैं फिर भी हमारा उनसे ऐसा प्रेम है कि उन्हें छोड़ते नहीं बनता। मथुरा में जाकर वे भले ही महान यदुवंश के राजा बन गए हों लेकिन उनका यह गौरव पूर्ण पद हमें अच्छा नहीं लगता। हमें तो उनका वह अहीर रूप ही मोहक है। हम सब यह नहीं जानती और नहीं समझतीं कि वसुदेव कौन हैं और देवकी कौन हैं? सूरदास के शब्दों में गोपियाँ उद्धव से कह रही हैं कि हे उद्धव, हमें श्याम सुंदर के रूप को देखे बिना अन्य कुछ भी दिखाई नहीं देता तात्पर्य यह है कि हमें उनके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है।
- पुस्तक : भ्रमरगीत सार (पृष्ठ 91)
- रचनाकार : आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- प्रकाशन : लोकभारती
- संस्करण : 2008
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