स्यामाजू के सरन जे सुख न सिराने
syamaju ke saran je sukh na sirane
स्यामाजू के सरन जे सुख न सिराने।
तिन कौं सुख सपनैं न लिख्यौ जे फिरत विविध बौराने॥
सींचत अंड आम की आसा फूल फलै न पिछाने।
दरसत परसत खात न जानत आँखि अछत अँधराने॥
बहुरो उद्यम करत निलज ह्वै इंद्र भए न अघाने।
ताहू भए अनभए निर्धन निघटि गए पछिताने॥
जरत हरित गीली लकरी लौं तन मन मिलन धुँधाने।
ते जानौ आतमहन पसु संसार सोक में साने॥
थोरी आयु मनोरथ लावे बिना बाहु बल ताने।
'बिहारीदास' बिन भए बौरिया बूड़े सबै अयाने॥
- पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 287)
- संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रचनाकार : बिहारिनिदेव
- प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
- संस्करण : जनवरी 1955
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