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सुत सुन एककथा कहुं प्यारी

sut sun ekaktha kahu.n pyaarii

परमानंद दास

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सुत सुन एककथा कहुं प्यारी

परमानंद दास

और अधिकपरमानंद दास

    सुत सुन एककथा कहुं प्यारी।

    नंद नंदन मन आनंद उपज्यो रसिक सिरोमनि देत हुंकारी॥

    दशरथ नृपजे हुते रघुवंशी तिनके प्रकट भये सुत च्यारी।

    तिन में राम एकव्रतधारी जनकसुता ताके घर नारी॥

    तात वचन सुन राज्य तज्यो है भ्राता सहित चले बनवारी।

    धावत कनकमृग के पाछें राजीव लोचन केलि बिहारी॥

    रावन हरन कियो सीता को सुन नंद नंदन नींद निवारी।

    परमानंद प्रभु रटत चाप कर लक्ष्मन देउ जननी भ्रम भारी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि : परमानंददास (पृष्ठ 59)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : परमानंददास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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