पूरै गुरु री आलंग कर प्राणी
purai guru ri alang kar parani
पूरै गुरु री आलंग कर प्राणी, पाणी हुंता पिंड घड़ै।
चलणे चालो नैणे निरखो, कान सुणे ज्यूं सुरत पड़ै।
पूरै गुरुनै सिंवर ओ प्राणी, बिना हथोड़ै देह घड़ै।
रळ च्यारूं वनवासा चाल्या, हांडी रै'अर हंस खड़ै।
पछै क्यांरा सुकरत करसी, जीव तो नान्ही जूण पड़ै।
हुय गाडरियो पग जुड़ावै, झाटकड़्यां री झूर पड़ै।
तेल्यां रै घर हुवै बळदियो, घाणी बहंता आर पड़ै।
डूमां रे घर हुवै घोड़लो, खूंटै बांध्यो भूख मरै।
हूं-हूं करनै हींस करैलो, जद चढ़णै री त्यारी करै।
वोपार्यां घर हुवै करहलो, सात मणां री गूण पड़ै।
गुरजां दे दे राह चलावै, थाक्यो ओठी कूद चड़ै।
ओडां रै घर हुवै पूणियो, ले बोरी अर पाळ चढ़ै।
हुय स्याणो अर गळियां हांडै, माणसियां री बटक लड़ै।
हुय कऊवो मुरदार भखेसी, चांच देवैलो रूंड बुरै।
पैली करतो डांग पटेली, अब क्यूं बैठ्यो आय दड़ै।
जीवंतड़ै जळ सार न जाण्यो, अब कांई न्हावै मुवै मंडै।
ले जपमाळा जपणनै बैठ्यो, अब कै पायो जलम रूड़ै।
एक घड़ी राजा राम जपोनी, अलख जपंता जीभ अड़ै।
[पछै कांय रा सुकरत करसी, जीव तो नान्ही जूण पड़ै]
गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ(जी) कथियो ज्ञान एकै ही घड़ै।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 190)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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