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साहेब बूड़त नाव अब मोरी

saaheb buuDat naav ab morii

धनी धरमदास

धनी धरमदास

साहेब बूड़त नाव अब मोरी

धनी धरमदास

और अधिकधनी धरमदास

    साहेब बूड़त नाव अब मोरी।

    काम क्रोध की लहर उठतु है, मोह पवन झकझोरी॥

    लोभ मोरे हिरदे घुमरतु है, सागर वार पारी।

    कपट की भंवर परतु है बहुतै, वा में बेडा अटको॥

    काल फाँस लियो है दूबारे, आया सरन तुम्हारी।

    धरमदास पर दाया कीन्हीं, काठि फंद जिव तारी।

    कहै कबीर सुनो हो धर्मन, सतगुरु सरवन उबारी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 251)
    • संपादक : जगजीवन राम
    • रचनाकार : धरमदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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