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साधौ भाई राम बसें जिन हिरदै

sadhau bhai ram basen jin hiradai

सैन भगत

सैन भगत

साधौ भाई राम बसें जिन हिरदै

सैन भगत

और अधिकसैन भगत

    साधौ भाई राम बसें जिन हिरदै, तिन घट धीरज होय॥

    जे जन राम रटें संग साँसाँ, तिन जिह्वा रसना होय।

    ईरस ताप जरै नहीं भीतर, हिरदा सीतल होय॥

    काम क्रोध लोभ नहीं व्यापे, सुख संतोस समोय।

    मोह नहीं व्यापे द्रोह नहीं आवे, भरम बीजे कोय॥

    चाह मिटे अर चिंता जावे, पातक आतक धोय।

    एक राम में समचित रेहवे, एकहि तार पिरोय॥

    सदा रहे तिनके घट हरसा, हरसावे सब कोय।

    सद्गुरु की किरपा जद होवे, तन-मन चानण होय॥

    सैन भगत सद्गुरु परबोध्यो, खबर पड़ी जद मोय।

    साधौ भाई राम बसें जिन हिरदै, तिन घट धीरज होय॥

    साधु भाई! जिनके हृदय में राम का निवास होता है, उनके हृदय में धीरज का भी निवास अवश्य होता है। वे तृप्त काम हो जाते हैं। जो लोग साँस-साँस के साथ राम-राम का जाप करते हैं, उन्हीं की जिह्वा सच में रसना कहलाती है। इस प्रकार के व्यक्तियों के मन में ईर्ष्या की आग नहीं जलती है। उनका हृदय सदा शीतल बना रहता है। काम, क्रोध, लोभ और द्रोह का प्रभाव नहीं पड़ता है। उनके हृदय में सदा सुख और संतोष बना रहता है। वह कभी किसी के प्रति भ्रम के भाव नहीं उत्पन्न करता। उसकी इच्छाएँ और चिंताएँ समाप्त हो जाती हैं। समस्त पाप धुल जाते हैं। वह सदा एक राम में ही लीन रहता है। एक ही नाम की माला, पिरोता है जपता है। उसके मन में सदा हर्ष का भाव रहता है, तथा वह सबको भी हर्षित करता है। जब सद्गुरू की कृपा हो जाती है, तब तन और मन दोनों शुद्ध हो जाते हैं। सैन भगत कहते हैं—मुझे जब ऐसा ज्ञान सद्गुरू ने प्रदान किया, तब समझ पड़ी। हे साधु भाई! जिनके हृदय में राम का निवास होता है, उनके मन धीरज होता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 312)
    • संपादक : अशोेक मिश्र
    • रचनाकार : संत सैन भगत
    • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
    • संस्करण : 2013

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