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राणाजी मुझे यह बदनामी लगे मीठी

ranaji mujhe ye badnami lage mithi

मीरा

मीरा

राणाजी मुझे यह बदनामी लगे मीठी

मीरा

और अधिकमीरा

    राणाजी मुझे यह बदनामी लगे मीठी।

    कोई निंदो कोई बिंदो मैं तो, चलूँगी चाल अनूठी।

    साँकड़ी गली में सत्गुरु मिलिया, क्यूँ कर फिरूँ अपूठी॥

    सत्गुरु जी सूँ बातज करतां, दुरजन लोगां ने दीठी।

    मीरा के प्रभु गिरधर नागर, दुरजन जलो जा अँगीठी॥

    राणाजी, मुझे यह बदनामी बहुत मीठी लगती है। कोई चाहे मेरी बुराई करे, चाहे भलाई। मैं तो सबसे निराली चाल चलूँगी। पतली गली में सतगुरु मिलते गए। फिर मैं क्यों अकेली चलूँ। सतगुरु से बातें करते हुए मुझे बुरे लोगों ने देख लिया मीरा के प्रभु तो गिरधर नागर हैं। ये बुरे लोग जाकर अँगीठी में जलें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मीरा वाणी (पृष्ठ 58)
    • रचनाकार : मीरा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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