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भजन बिनु कूकर−सूकर−जैसो

bhajan binu kukar−sukar−jaiso

सूरदास

सूरदास

भजन बिनु कूकर−सूकर−जैसो

सूरदास

और अधिकसूरदास

    भजन बिनु कूकर−सूकर−जैसो।

    जैसैं घर बिलाव के मूसा, रहत बिषय−बस वैसौ॥

    बग−बगुली अरु गीध−गीधिनी, आइ जनम लियौ तैसौ।

    उनहू कैं गृह, सुत, दारा हैं, उन्हैं भेद कहु कैसौ?

    जीव मारि कै उदर भरत हैं, तिन कौ लेखौ ऐसौ।

    सूरदास भगवंत−भजन बिनु, मनौ ऊँट−बृष−भैंसौ॥

    भजन किए बिना तो कुत्ते या सूअर के समान मनुष्य-जीवन है। जैसे बिल्लीवाले घर में चूहे (सदा मृत्यु के ग्रास बने रहते हैं), वैसे ही (मनुष्य भी) विषय−वासना के वश हुआ मृत्यु के चंगुल में रहता है। जैसे बगुले−बगुली और गिद्ध−गिद्धनी जन्म लेते हैं, वैसे ही उसने भी पृथ्वी पर व्यर्थ जन्म लिया है। बगुले−गिद्ध आदि के भी घर, पुत्र, स्त्री आदि तो हैं ही; फिर मनुष्य का उनसे किस बात में भेद कहा जाए। जो लोग दूसरे जीवों को मार कर अपना पेट भरते हैं, उनकी गणना तो बगुले−गिद्ध में ही है। सूरदास कहते हैं−भगवान का भजन किए बिना तो मनुष्य ऊँट, बैल और भैंसे के समान ही है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूर−विनय−पत्रिका (पृष्ठ 49)
    • रचनाकार : सुदर्शनसिंह
    • प्रकाशन : गीता प्रेस
    • संस्करण : 2000

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