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निर्गुन सगुन कहत जिहिं बेद

nirgun sagun kahat jihin bed

हरिव्यास देव

हरिव्यास देव

निर्गुन सगुन कहत जिहिं बेद

हरिव्यास देव

और अधिकहरिव्यास देव

    निर्गुन सगुन कहत जिहिं बेद।

    निज इच्छा बिस्तारि बिबिध बिधि बहु अनवहो दिखावत भेद॥

    आप अलिप्त लिप्त लीला रचि, करत कोटि ब्रह्मांड बिलास।

    शुद्ध, सत्व, पर के परमेसुर, जुगलकिशोर सकल सुख रास॥

    अनंत-सक्ति आधीस अचिंतक, ऐश्वर्यादि आखिल गुनधाम।

    सब कारन के कर्ता धर्ता, नित नैमित्य नियंता स्याम॥

    सकल लोक चूड़ामनि जोरी, घोरी रस माधुर्य असेस।

    कोटि-कोटि कंदर्प दर्पदलमलन मनोहर बिसद सुवेस॥

    पारावरादि असत-सत-स्वामी, निरवधि नामी नामनिकाय।

    नित्य-सिद्ध सर्बोपरि ‘हरि-प्रिया’, सब सुखदायक सहज सुभाय॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 294)
    • संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
    • रचनाकार : हरिव्यास देवाचार्य
    • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
    • संस्करण : जनवरी 1955
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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