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केलि-विलास (वर्षा)

keli wilas (warsha)

चंदबरदाई

चंदबरदाई

केलि-विलास (वर्षा)

चंदबरदाई

और अधिकचंदबरदाई

    आले वद्दल मत्त मत्त विषया दामिन्नि दामायते।

    दादुल्ले दल सोर मोर सरसा पप्पीहान् चीहायते।

    शृंगाराय: वसुंधरा ललितया सलिता समुद्रायते।

    यामिन्या सम वासरे विसरता प्रावृट्ट पश्यामि ते॥

    जल से भरे बादल विषय में मत्त हो रहे हैं, और दामिनी दमक रही है। दादुरों का दल भौंरों के साथ ही शोर कर रहा है और पपीहे चीत्कार कर रहे हैं। लालित्यपूर्वक वसुंधरा ने शृंगार किया है, और सरिता समुद्र बन रही है। रात के समान ही अंधकार पूर्ण होकर दिन भी बीत रहे हैं। वर्षा में ऐसा दिखाई पड़ रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पृथ्वीराज रासउ (पृष्ठ 247)
    • रचनाकार : चंदबरदाई
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन चिरगाँव (झाँसी)
    • संस्करण : 1963

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