पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां
pagh na bandhan pilang na poDhan
पाघ न बांधां पिलंग न पोढ़ां, इण खोटै संसारूं।
अंजन छोड निरंजन ध्यावां, हुय ध्यावां हुसियारूं।
माया छोड हुवा वनवासी, जाप जप्या निरकारूं।
एकलवाही गुरु फरमाई, राच्या हो कांई राज दुवारूं।
राज दुवारां ईसर बाबो, भळकंतै दीदारूं।
दीदार सरेवो कांनड़ बाबो, जुग जुग दैत सिंघारूं।
दुनियां में समझाऊ आया (मेल्या), तात्या कई गिंवारूं।
समझाया पण समझै नाहीं, परलै गया अहंकारूं।
बुध सूं वाद रच्यो दुरजोधन, जंभि भींव जुंहारूं।
सोना रूंपा साहण वाहण, सबही गयो गुदारूं।
इंद भवन सारंगनै सिंवरो, जो जळ हुंता खारूं।
पहलो राजा वासक सिंवरां, सैंस फणां सिकदारूं।
दूजो धवळो धोरी सिंवरां, धरती धरण उधारूं।
तन म्हारो धरती पर पोढै, गुरु म्हारा पार ज पारूं।
रतन काया म्हे इण पर पोढ़ां, (जद लग ही उर बारूं) जद लग पिंड उबालें।
इतरा सबद हुवै सब साचा, कवळ्यो कांन चितारूं।
सुरगां हुंता दोय रथ आया, जां जढ पौंहता पारूं।
गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथ(जी) असली ज्ञान विचारूं।
- पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 188)
- संपादक : सूर्य शंकर पारेक
- रचनाकार : जसनाथ
- प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
- संस्करण : 1996
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