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ओं आप ही आप आप उपन्ना

o.n aap hii aap aap upanna

जसनाथ

जसनाथ

ओं आप ही आप आप उपन्ना

जसनाथ

और अधिकजसनाथ

    ओं आप ही आप आप उपन्ना, जद रा कहुं विचारूं।

    जद कोई चांद सूरज, पौन पाणी, अठकुळ परवत।

    नहीं हवंता, हवंता सागर खारूं।

    सिंझ मंझ सित सागर, दीसंता दीदारूं।

    तंत मंत जड़ी बूटी, कोई हेत पियारूं।

    ईसर बूझै सुण गुरु गोरख, थारै परापरेरी जापर हुंती जद रा कहुं विचारूं।

    ईसर जोग छतीस छतीसां, और बत्तीसां, पैलां अंत पारूं।

    पार अपारूं धंधुकारूं, जद गुरु हवंता घोर अंधारूं।

    आपणौ गुरु आप उपन्नौ, भेद पायो अंत दीनौ।

    आपीणौ गुरु आप लखायो, नांव कुहायो सिरजणहारूं।

    राम कुहायो नाथ, ज्ञान विचास्यो सहदेपात।

    गुरु अर चेला जुग जुग साथ, जयो जयो गुरु गोरखनाथ।

    सुर नर पूजै थांरा पाव, इसड़ो कई लाधो डाव।

    जत सूं उपन्नो सत हूं वाधो, इसड़ो ठाव कई लाधो।

    ईसर बूझै सुण गुरु गोरख, कह तो उमत उपाय दिखाळूं।

    जोई उपावों जोई खपावों, शीले संजमे चालूं।

    भूला भूल करै उपवांई, जां करूं खैकालूं।

    जो म्हारी फरमाई हालै, हक रा पासा ढाळूं।

    मनवो बूझै सुण तनवा, तूं है बडो हूं ल्होड़ो।

    जिभ्या इम्रत बांच सुणाई, मुख सूं बोल संकोड़ो।

    जो म्हारी फरमाई हालै, तो घालूं नाक नकोड़ो।

    मनवो तनवो दोनूं मिंत, ज्ञान बैठा निकळंक चिंत।

    दोनां भणियो ऊंकार, जद उपन्नो (ओ) जुग-संसार।

    पैलाणी पर चेत्यो नाहीं, चेत्यो मरतै जांत।

    जिण री वाही कदै होवै, रूंळयो फिस्य फिर धंधा बांध।

    मनस्या बोली दे गुरु मान, रम रैया जां साध्या राम।

    सुना देखि बसावो रान, आसण बैठा कथो ज्ञान।

    सुरनर सिरज्या दो ज्यूं कान, तूं ही ईसर गोरख खान।

    सुणो दधा, सुण दधवंती, सुणो मेदनी सर्वा।

    गरवो ईसर ज्ञान विचारे, सोई उपाया पैला।

    मान बड़ाई सेही लेसी हुय हुय चालै (हरि) बंदा।

    धरत किसी सूं वाद कीजै, तूं है पूरी ढाल।

    रूंड़ा बुरा सब तोपर हुयसीं, जांनै नाहीं पाल।

    जळ थळ महि अर डूंगर सिरज्या, ओरूं डैर’र ताल।

    औरांनै बाईंदा बाजै, घणा लंघसी काल।

    गोरखनाथै हितकर सिरजी, खोई एकै साल।

    भार सहौं भरभार सहौं, निरधारी गुरु किण पर रहौं तैंलही कोई ठामणहार।

    दोऊं कर जोड़्यां धरती विनवै, सत्य हो सिंभू सिरजणहार।

    भार सहौं भर भार सहौं, जे जाणू तो लाग लहौं।

    तैंहीं उपाई तैहीं रचाई, औरां मांगण कीं कनै जहौं।

    धरती माता, तूं जीवतड़ा पिंड पाळे पोसे, मुवा मेली मूल।

    साध कहैंला धरती गरवी, खोटी कहैंला थूळ।

    गोरखनाथै हितकर सिरजी, भव भव री आहूल।

    बडा बडी हूं धरती कुहाय, कोड़ निन्नाणवै भोपतराय औरां दस अर बीस।

    सिरजणहार सदा सरेवां, ध्यावां गुरु जगदीश।

    वेद विद्या ज्यूं गोरख लाधी, सेत काया ज्यूं गोरख साधी।

    आप अपंपर फेरी मनस्या, धरती राखी सत री बांधी।

    धरत कहै म्हारै माय बाप, हूँ रूठी सदा ही तूठी हूं किणीने मारी।

    रूंड़ो सो वर ल्होडू, धरती कहै विचारी।

    दोउं कर जोड़्यां धरती विनवै, करसी दुनी खवारी।

    धरती माता तोनै वर भारूं, ल्होड़ो इंद तणो इंदाणू।

    दीठ्यो भाळ्यो जोयो न्हाल्यो, और नहीं कोई ठाणूं।

    दूजै वर तूं तिरपत नाहीं, धरती इंदो माणू।

    सुण चंदा सुण गोविंदा, ज्ञान भणै छै गोरखराय।

    बीजा गोला सरवे ठांभे, वरसा वरसी दीज्यो एक नियाव।

    सुण गोरख महमाई विनवै, तूं है गुरु हूं चेली।

    घणा घणेरा चिलत किया हा, मोहर बात अखेली।

    ज्यूं करे ज्यूं गोरख बाबा, थांरी भव भव रहौं सहेली।

    धरती माता की आयना रळाई, महमाई को मान रळायो।

    गुरु गोरख को ज्ञान रळायो, ईसर बाबै को ध्यान रळायो।

    सत धरती थायो, धरतीनै इंद परणायो।

    इंद परणायो, बाजा वाया, कोछळ खेल्यो, उलस उलस आयो।

    च्यार पो’र इंद धरती सूं जूवै खेल्यो,

    गोरखनाथै महर करी ही, काइ एक ताळ ठंभायो।

    पै’ली वाचा सतजुग आयो, दूजी वाचा त्रेता कुहायो।

    तीजी वाचा दुवा जुग लायो, चौथी वाचा कल परचायो।

    कल परचाय हुवै जिगीस, तो सिंवरैला सुर तेतीस।

    ध्यावां सरेवां, सिरजणहार सदा गुरु जगदीश।

    इंदर वरसै पोटल पाणी, जिण पर धरती हुये सिराणी।

    कांयै रे बाळा जायो उपायो, का तूं आयो आप उपात।

    जोग छतीसूं धंधु वरत्या, कैय काई जद, पहली री बात।

    जद म्हारै इंद दादो, धरती दधवंती, जत सत गोरख बाप।

    इतरा दिन म्हे दोही हवंता, अब पांचे हुवो साथ।

    पांचूं तो एकै घट भीतर बोलै, बोला बोली एकै घात।

    जुगां छतीसां सूं तां पै’ली, पवन जगायो, ईसर तूं पण नाहीं घाट।

    गुरु गोरख सूं खोटी बैवैला, जांनै मेलो दाट।

    तूं है तावत हूं छू सीळ, गोरखनाथो गुणा गंभीर, बांचै है बावन वीर।

    तूं है देवत हूं छूं देवी, जरूं मरूं रहीं कटेवी।

    विरळां विरळां वो पण सेवी, सो कोई करे आपणी सेवी।

    बाजै पवन उघाड़ो नागो, रूप सरूपो भाग सुभागो।

    डर नहीं कंई खड़ग नहीं खागो, उमट आवै हुय वैरागो।

    टुक एक मान सत रो धागो, क्यूंएक डरपै गोरख माघो।

    तूंही धरती तूंही वरती, तूंही आद्य सगती।

    मनस्या फोर हुई महमाई, जुग जुग री सतवंती।

    जुग जुग री बहन भाणजी थई, सती भै आप मती।

    जिण लोयण बाण सुवायो, बुरो बीनी एक रती।

    अगम वेद अनोतर वाणी, गुरु विद्या कूं खोज पिराणी।

    जारे जीव जनोती धरती पोथी, नर वासंनर लेखण पौन’र पाणीं।

    चांद सूरज दोय दीपक सिरज्या, सिरजी मनस्या मन हठ मना भिहाणी।

    बिन करणी तारेवो नाहीं, ऊं कहियो गुरु जाणी।

    जळहळ जळहळ करती जळा, तूट्यो ईसर दे सितळा।

    घर गोरख रै अणंत कळा, बीजळिये वासंनर पळा।

    निरत नारायण, सुरत सहदेव, भणै भणै हियाळी हंसदेव।

    जो थे मन मन करस्यो माड, तो सुरग मंडळिये हुयसी लाड।

    सुरग मंडळे सीधा जावो, जंबू दीपे सुरग ठिकाण।

    भगवीं धोती भगत पिछाण, गुरु आयां रा सैनाण।

    हाबल काबल बहन’र भाई, बहन’र भाई प्रीत चलाई, दुनियां धंधै लाई।

    हाबल सो है तकवै जाय, पांचूं इन्द्री आणै ठाय।

    काबल सो तो कजिया सारै, अगम अगोचर की बात विचारै।

    (बात विचारै सांझ सुंवारै) सो जोगी तो कबू हारै।

    सुण लखू सुणो अलखू, सुणो मेदनी सर्वा

    अरबां खरबां खगं तुंभा, एता ज्ञान विचारूं।

    गुरु प्रसादे गोरख वचने (श्रीदेव) जसनाथी(जी) बांच्यो इम्रत वेद विचारू।

    तूं ही जयो तूं ही जैकार, तूं ही स्वामी सिरजणहार।

    भाजंण घड़ण उपावणहार, थां धरती समायो भार।

    बिन थांभै रचियो गैणार, पौन’र पाणी कळा पसार।

    नर वासंनर काया उधार, कंथा सोवै मंडळ धार।

    मनस्या वरसै इंद झिलार, जिण जोगी रा उपकार।

    जारै नैणे सूरज चंदो दीदार, तारा मंडळ मस्तक माळ।

    परापरेरा पौन’र पार, सुचियारां रा है घरबार।

    साधु साध बैवै उपकार, साधां तकवी गुरु री लार।

    सती कुहाई सीता माय, जती कुहायो लखण कुंवार।

    मथुरा मांही कांन गुवाळ, जिण खूनी केता किया खुवार।

    इण पर बाबो अलख अपार, गोरख साझ्या धंधुकार।

    गोरखछंद रा सुणो विचार, (श्रीदेव) जसनाथ(जी) बांच्यो निज सारां ही सार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सबद ग्रंथ (पृष्ठ 169)
    • संपादक : सूर्य शंकर पारेक
    • रचनाकार : जसनाथ
    • प्रकाशन : श्री देव जसनाथ सिद्धाश्रम (बाड़ी) धर्मनाथ ट्रस्ट बीकानेर (राज.)
    • संस्करण : 1996
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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