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माधव, आप सदा के कोरे

madhaw, aap sada ke kore

सत्यनारायण कविरत्न

सत्यनारायण कविरत्न

माधव, आप सदा के कोरे

सत्यनारायण कविरत्न

और अधिकसत्यनारायण कविरत्न

    माधव, आप सदा के कोरे।

    दीन-दुखी जो तुमको जाँचत, सो दाननि के भोरे॥

    किंतु बात यह तुव सुभाव वे नैकहुँ जानत नाहीं।

    सुनि-सुनि सुजस रावरो तुव ढिंग, आवनको ललचाहीं॥

    नाम धरैं तुमको जग-मोहन, मोह तुमको आवै।

    करुनानिधि तुव हृदय एकहु करुना-वृन्द समावै॥

    लेत एक कौ देत दूसरेहिं, दानी बनि जगमाहीं।

    ऐसो हेर-फेर नित नूतन, लाग्यौ रहत सदाहीं॥

    भाँति-भाँति के गोपिन के, जो तुम प्रभु चीर चुराये।

    अति उदारता सों लै वेही, द्रौपदी कों पकराये॥

    रतनाकर कों मथत सुधा कौ, कलस आप जो पायौ।

    मंद-मंद मुसुकात मनोहर, सो देवन कों प्यायौ॥

    मत्त गयंद कुबलिया के जो, खेल प्रान हरि लीनें।

    बड़ी दया दरसाइ दयानिधि! सो गजेन्द्र को दीनें॥

    करिकै निधन बालि रावन कौ, राजघाघाट जौ आयौ।

    तहँ सुग्रीव विभीषन को करि, अति अहसान बिठायौ॥

    पौंडरीक कौ सर्वनास करि, माल-मता जो लीयौ।

    ताको विप्र सुदामा के सिर, करि सनेह मढ़ि दीयौ॥

    ऐसी तूमा-पलटी के गुन, नेति नेति सुति गावैं।

    सेस महेस सुरेस गनेसहूँ, सहसा पार पावैं॥

    इत माया अगाध सागर, तुम डोबहु भारत-नैया।

    रचि महाभारत कहूँ लरावत अपु में भैया-भैया॥

    या कारन जग में प्रसिद्ध अति निबटी रकम कहाओ।

    बड़े-बड़े तुम मठा धुँवारे, क्यों साँची खुलवाओ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 368)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : सत्यनारायण कविरत्न
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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