पिछवारें व्हे बोल सुनायो री
pichhvaare.n vhe bol sunaayo rii
पिछवारें व्हे बोल सुनायो री ग्वालन। कमल नैन प्यारो करत
कलेऊ कोर न मुखलों आयो।
अरी मैया एक बन ब्याही गैया बछरा वहीं बसायो।
मुरली न लई लकुटिया न लीनी अरबराय कोऊ सखा न बुलायो॥
चकित भई नंदजू की रानी सत्य आय किधों सपनों पायो।
फूले गाल ने मात रसिकवर-त्रिभुवन आय सिर छत्र न छायो॥
बैठे जाय एकांत कुंज में कियो विविध भांत मन भायो।
परमानंद सयानी ग्वालन उलट अंके गिरिधर पिय पायो॥
- पुस्तक : अष्टछाप के कवि : परमानंददास (पृष्ठ 39)
- संपादक : हरगुलाल
- रचनाकार : परमानंददास
- प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
- संस्करण : 2008
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