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मोर-मुकुट झलमलै सीस पर

mora-mukuT jhalamlai siis par

ललितमाधुरी

ललितमाधुरी

मोर-मुकुट झलमलै सीस पर

ललितमाधुरी

और अधिकललितमाधुरी

    मोर-मुकुट झलमलै सीस पर, कलगी सुघर सँवारी है।

    कटि कछिन रौरी बपु नटवर, पग नूपुर-धुनि प्यारी है॥

    सहज लगी उर नवल किसोरी, निरख जहाँ फुलवारी है।

    क्यों बरनों छबि ‘ललितमाधुरी’, राधारमन बिहारी है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : चैतन्य मत और ब्रज साहित्य (पृष्ठ 331)
    • संपादक : प्रभुदयाल मीतल
    • प्रकाशन : साहित्य संस्थान, मथुरा
    • संस्करण : 1962

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