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मोहन-वदन की सोभा

mohan wadan ki sobha

गदाधर भट्ट

गदाधर भट्ट

मोहन-वदन की सोभा

गदाधर भट्ट

और अधिकगदाधर भट्ट

    मोहन-वदन की सोभा।

    जाहि देखत उठति सखि आनंद की गोभा॥

    नैन धीर अधीर कछु-कछु असित सित राते।

    प्रिया-आनन चंद्रिका-मधुपान-रस-माते॥

    बंसिका कलहंसिका मुख-कमल-रस-राची।

    पवन परसत अलक अलिकुल कलह-सी माची॥

    ललित लोल कपोल, कुंडल मधुर-मकराकार।

    जुगल सिसु सौदामिनी जनु नचत नट-चटसार॥

    विमल जलक सुढार मुक्ता नासिका दीनों।

    ऊँच आसन पर असुर-गुरु उदौ-सौ कीनों॥

    भौंह सोहनिका कहौं अरु भाल कुमकुम-बिंदु।

    स्यामबादर-रखे परि मनु अबहिं ऊग्यौ इंदु॥

    लग्यौ मन ललचाइ तातें टरत नहिं टार्यो।

    अमित अद्भुत माधुरी पर ‘गदाधर’वार्यौ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 78)
    • रचनाकार : गदाधर भट्ट
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
    • संस्करण : 2002

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