मरन सो हक रे है बाबा
maran so hak re hai baba
मरन सो हक रे है बाबा
मरन सो हक है॥
काहे डरावत मोहे बाबा,
उपजे सो मर जाये भाई।
मरन धरन सा कोई बाबा,
जनन-मरन ये दोनों भाई।
मोकले तन के साथ
मोती पुरे सो आपही मरेंगे,
बदनामी झुठी बात॥
जैसा करना वैसा भरना,
संचित ये ही प्रमान।
तारन हार तो न्यारा है रे,
हकीम वो रहिमान॥
बहिनी कहे वो अपनी बात,
काहे करे डौर (गौर)।
ग्यानी होवे तो समज लेवे,
मरन करे आपे दूर॥
- पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 369)
- संपादक : काका साहेब कालेलकर
- रचनाकार : बहिणाबाई
- प्रकाशन : मोतीलाल बनारसीदास
- संस्करण : 1963
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