मैं हेरि रहूँ नैना सो नेह लगाई
mai.n heri rahuu.n naina so neh lagaa.ii
मैं हेरि रहूँ नैना सो नेह लगाई॥
राह चलत मोहिं मिलि गये सतगुरु, सो सुख बरनि न जाई॥
देह के दरस मोहिं बौराये, लै गये चित्त चुराई॥
छवि सत दरस कहाँ लगि बरनी, चाँद सुरज छिपी तब जाई॥
धरमदास बिनवै कर जोरी, पुनि पुनि दरस दिखाई॥
- पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 249)
- संपादक : जगजीवन राम
- रचनाकार : धरमदास
- प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
- संस्करण : 1963
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