लटकि-लटकि मनमोहन-आवनि।
झूमि-झूमि पग धरत भूमि पर, गति मातंग-लजावनि॥
गोखुर-रेनु अंग-अंग मंडित, उपमा दृग सकुचावनि।
नव-घनपै मनु झीन बदरिया, सोभारस बरसावनि॥
बिगसनि मुखलौं कांति दामिनी, दसानावलि दमकावनि।
बीच-बीच घन-घोर माधुरी, मधुरी बेनु-बजावनि॥
भक्तमाल उर लगी छबीली, मनु बग-पाँति सुहावनि।
बिंदु गुलाल गुपाल-कपोलनि, इन्द्र-वधू-छबि-छावनि॥
रुनन-झुनन किंकिन-धुनि मानों, हँसति की चुहचावनि।
बिलुलित अलक धूरि-धूसर तन, गमन लोट विभु आवनि॥
जँघिया लसनि कनक कछनी पै पटुका ऐंचि बँधावनि।
पीतांबर फहरानि मुकुटछबि नटवर वेस बनावनि॥
हलनि बुलाक अधर तिरछोंहीं बीरो सुरस रचावनि।
‘ललितकिसोरी' फूल झरनि या मधुर-मधुर बतरावनि॥
- पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 272)
- रचनाकार : ललितकिशोरी
- प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
- संस्करण : 2002
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