कहन लागे मोहन मैया-मैया
Kahan Lage Mohan
कहन लागे मोहन मैया-मैया।
नंद महर सौं बाबा-बाबा, अरु हलधर सौं भैया॥
ऊँचे चढ़ि-चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया।
दूरि खेलन जनि जाहु लला रे, मारैगी काहु की गैया॥
गोपी-ग्वाल करत कौतूहल, घर-घर बजति बधैया।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ, चरननि की बलि जैया॥
मोहन अब ‘मैया’ ‘मैया’ कहने लगे हैं। वे व्रजराज श्रीनन्दजी को ‘बाबा’ ‘बाबा’ कहते हैं और बलरामजी को ‘भैया’ कहते हैं। यशोदाजी ऊँची अटारी पर चढ़कर श्याम का नाम ले-लेकर (पुकारकर) कहती हैं ‘कन्हैया! मेरे लाल! दूर खेलने मत जाओ! किसी की गाय मार देगी।’ गोपियाँ और गोप आनन्द-कौतुक मना रहे हैं, घर-घर बधाई बज रही है। सूरदासजी कहते हैं— ‘प्रभो! आपका दर्शन पाने के लिये मैं आपके चरणों पर ही न्योछावर हूँ।’
- पुस्तक : श्रीकृष्णबाल-माधुरी (पृष्ठ 87)
- रचनाकार : सूरदास
- प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
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