कबहुँक अंब, अवसर पाइ
kabahunk amb, awsar pai
कबहुँक अंब, अवसर पाइ।
मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करुन-कथा चलाइ॥
दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ॥
बूझिहैं ‘सो है कौन’, कहिबी नाम दसा जनाइ।
सुनत राम कृपालु के मेरी बिगरिऔ बनि जाइ॥
जानकी जगजनिन जनकी किये बचन सहाइ।
तरै तुलसीदास भव भव नाथ-गुन-गन गाइ॥
तुलसीदास सीता से प्रार्थना करते हैं कि हे माता! कभी अवसर हो तो कुछ करुणा की बात छेड़कर श्रीराम जी को मेरी भी याद दिला देना (इसी से मेरा काम बन जाएगा)। यों कहना कि एक अत्यंत दीन, सर्व साधनों से हीन, मन-मलीन, दुर्बल और पूरा पापी मनुष्य आप की दासी का दास कहलाकर और आपका नाम ले-लेकर पेट भरता है। इस पर प्रभु कृपा करके पूछें कि वह कौन है, तो मेरा नाम और मेरी दशा उन्हें बता देना। कृपालु रामचंद्र जी के इतना सुन लेने से ही मेरी सारी बिगड़ी बात बन जाएगी। हे जगजननी जानकी! यदि इस दास की आपने इस प्रकार वचनों से ही सहायता कर दी तो यह तुलसीदास आपके स्वामी की गुणावली गाकर भवसागर से तर जाएगा।
- पुस्तक : विनय-पत्रिका (पृष्ठ 55)
- रचनाकार : तुलसी
- प्रकाशन : गीताप्रेस
- संस्करण : 1998
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