जो रे भाई राम दया नहीं करते।
नवका नाँव खेवटहरि आपै, यों बनि क्यों निस्तरते॥
करनी कठिन होत नहीं मोपै, क्यों कर ये दिन भरते।
लालच लागि परत पावक में, आपहि आपै जरते॥
स्वादहिं संग बिषै नहिं छूटै, मन निहचल नहिं धरते।
खाय हलाहल सुख के ताई, आपै हो पचि मरते॥
मैं कामी कपटी क्रोध काया में, कूप परत नहिं डरते।
करवत काम सीस धरि अपने, आपहि आप बिहरते॥
हरि अपना अंग आप नहिं छाडै, अपनी आप बिचरते।
पिता क्यों पूत कौं मारै, दादू यों जन तरते॥
- पुस्तक : दादू दयाल की बानी (दूसरा भाग) (पृष्ठ 7)
- रचनाकार : दादू दयाल
- प्रकाशन : बेलवेडियर स्टीम, इलाहाबाद
- संस्करण : 1914
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